मुक्तक
"भीतर मन में बेचैनी ,बाहर बड़े झमेले हैं ,
छुद्र स्वार्थ भरे जग में ,सुख -दुःख के सब मेले हैं
कैसे छूटेगा जन्म-मरण का चक्र ये शाश्वत
हर पल मन तड़पे है ,मुक्ति की राह टटोले है "
"भीतर मन में बेचैनी ,बाहर बड़े झमेले हैं ,
छुद्र स्वार्थ भरे जग में ,सुख -दुःख के सब मेले हैं
कैसे छूटेगा जन्म-मरण का चक्र ये शाश्वत
हर पल मन तड़पे है ,मुक्ति की राह टटोले है "
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