May 18, 2013

देश की सीमाओं का लंघन करने वालों के सुधरने की आस कब तक ?

"हम क्यूँ ये सोचते हैं कि ,'वो' भी कभी सुधरेंगे....................

'वो'जो अलग हुए थे कभी नफरत की बिसात पर,
खाया है धोखा हमने उनकी हर बात पर .
क्या उनकी सोच के रंग भी कभी बदलेंगे ?

हम क्यूँ ये सोचते हैं कि ,'वो'भी कभी सुधरेंगे ......................

बढाया तो था कई बार दोस्ती का हाथ ,
हर बार उन्होंने ही मौके पे छोड़ा  साथ .
क्या अब 'वो'अपनी बात से नहीं मुकरेंगे?

हम क्यूँ ये सोचते हैं कि ,'वो'भी कभी सुधरेंगे .................

खेल कर भी देखा ,चला कर रेल को भी देखा ,
उनकी रुसवाइयों से हमने कुछ भी नहीं सीखा .
क्या 'वो' पत्थर-दिल भी कभी पिघलेंगे?

हम क्यूँ ये सोचते हैं कि ,'वो'भी कभी सुधरेंगे ..............

लाँघ  कर खुद ही सीमाओं को कहते है -सीमा में रहो,
हम भी खूब हैं , सोचते हैं चलो भावनाओं में बहो .
क्या किसी 'सरबजीत'के दिन भी कभी बहुरेंगे?

हम क्यूँ ये सोचते हैं कि ,'वो'भी कभी सुधरेंगे .........

काम न आया कोई दबाव और कैसी भी सख्ती,
'उन्होंने'तो टांग रखी  है गले में तख्ती .
इरादे हैं हमारे 'नापाक'हम कभी नहीं सुधरेंगे .

हम क्यूँ ये सोचते हैं कि , 'वो' भी कभी सुधरेंगे ............
'



May 15, 2013

"मत चूक चौहान,अबकी कर दे तू मतदान।


क्या बैठा है घर के अंदर,बाहर आ और देख बवंडर,
कैसे-कैसे भ्रष्टाचारी बन बैठे बलवान,
अबकी कर दे तू मतदान।

मत चूक चौहान,अबकी कर दे तू मतदान।


घोटालों पर घोटाला,कर के बैठे सब मुँह काला ,
क्यूँ चिढ़ता जब चुनता नहीं- होनहार बिरवान ,
अबकी कर दे तू मतदान।

मत चूक चौहान,अबकी कर दे तू मतदान।


किसे चुनू ,और किसे नहीं,क्या है कोई एक सही,
सोच ले जी भर,पर मत बन अब नादान,
अबकी कर दे तू मतदान।

मत चूक चौहान ,अबकी कर दे तू मतदान।

मत  मत कर  तू 'मत'  कर दे हर कीमत पर,
लोकतंत्र के यज्ञ की ये आहुति बड़ी महान,
अबकी कर दे तू मतदान।

मत चूक चौहान,अबकी कर दे तू मतदान।"



May 11, 2013

माँ मेरी प्यारी माँ .............जन्म के बाद सबसे पहले शायद मैंने तुम्हे ही पुकारा होगा ,मेरी पहली मुस्कान पर भी सबसे पहले तुम्हीं वारी  होगी,पहली बार जब कदम लडखडाये होंगे तब भी तुम्हीं ने संभाला होगा, पहला अन्न का निवाला भी तुम्हीं ने खिलाया होगा ,वो थक कर तुम्हारी गोद में सो जाना ....वो तुम्हारा मेरे सिर  में तेल लगाना,मेरी चोटी बनाना.......वो स्कूल से आकर अपनी अलमारी सहेजी हुई मिलना ..........वो मेरी पसंद की चीज़ खुद न खाकर मुझे खिला  देना ..............वो मेरी ग़लतियों  पर मुझे समझाना और फिर उन पर पर्दा भी डालना .............इन सबका मोल मैंने तब समझा जब मै  खुद माँ बनी।
  कुछ भी हो माँ तुम बिलकुल नहीं बदलीं ...क्योंकि जब मै  पाँच  बरस की थी तब भी तुम मुझे दूध पीने के लिए डांटती थीं और आज जब मै  पचास की होने को आई तब भी तुम पूछना नहीं भूलतीं कि ,'दूध तो पीती हो ना?'पर एक प्रश्न मुझे बार-बार कचोटता है ,आज पूछती हूँ ,मैंने तो इस दुनिया में सबसे पहले तुम्हे ही अपना जाना था,सब कहते भी हैं कि  मै  तुम्हारी पेट-जायी  हूँ ,फिर तुम ये क्यों कहती हो कि  ,मै  परायी हूँ।






तूने फूँके प्राण तन-मन में, माँ तुझसे ही है ये जीवन.

तेरी साँसों की लय पर, सीखा मैंने साँसे लेना.
धड़का ये ह्रदय पहले, सुन कर तेरी ही धड़कन.
 
तूने फूँके प्राण तन-मन में ,माँ तुझसे ही है ये जीवन.

तेरे आँचल में ही देखा, पहला सुखद सपन सलोना.
तेरी बाँहों के  झूले में ,मिट  जाती  थी हर  थकन .

तूने फूँके प्राण तन-मन में ,माँ तुझसे ही है ये जीवन .

जीवन-पथ से चुन कर काँटे,सिखलाया सपनों को संजोना.
हर ठोकर पर गोद तुम्हारी,तुमने ही दिखलाया था दर्पण.

तूने फूँके प्राण तन-मन में,माँ तुझसे ही है ये जीवन.

बनाया स्वाभिमानी तुमने,तो तुम्ही से सीखा मैंने झुकना.
देकर संस्कारों की थाती ,बना दिया ये जीवन उपवन.

तूने फूँके प्राण तन-मन में ,माँ तुझसे ही है ये जीवन.

माँ क्या होती है ,ये मैंने माँ बन कर है जाना,
अपने आँचल के फूलोँ पर करती तन-मन-धन और जीवन अर्पण.

तूने फूँके प्राण तन-मन में माँ तुझसे ही है ये जीवन.

May 01, 2013

अमेरिका में आज़म खान की जामा  तलाशी पर आज़म  खान और उनके समर्थको ने इतना शोर क्यों मचा   रखा है -ये समझ के बाहर है। अमेरिका के बोस्टन शहर में हाल ही हुए धमाकों में इतनी बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे-ये सबको पता है। अब वहाँ  सुरक्षा-व्यवस्था में सख्ती बरता जाना ,कोई अचरज की बात नहीं है। अमेरिका में तो आम दिनों में ही सुरक्षा के नियमों का कड़ाई  से पालन होता है। वहां हवाई-अड्डों पर तलाशी-प्रक्रिया से हर इंसान को गुज़रना  पड़ता है ,फिर चाहे वो किसी भी देश का नागरिक हो, नेता हो या खान ही क्यों न हो। हमारे देश के नेता कुछ ज्यादा ही ego-friendly हैं।यहाँ लाल बत्ती की गाड़ी,बन्दूक-धारी  गार्डों से घिरे  और हर जगह वी .वी .आइ .पी  इंतजामों में रहने वाले को अगर एयर-पोर्ट का साधारण अधिकारी तलाशी देने को कहेगा तो उसके अहम् को कितनी चोट पहुंचेगी -ये अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है। अपने देश में भले ही आप माननीय गण  नियमों की धज्जियाँ उड़ायें पर अमेरिका या किसी भी दूसरे  देश में तो आपको वहाँ  के नियमों का पालन करना ही पड़ेगा। मुझे नहीं लगता कि , अमेरिका में जान -बूझ कर मुसलामानों के खिलाफ साजिश होती है,अगर ऐसा होता तो दुनिया भर के और भारत के भी इतने मुसलमान वहाँ  सुख-चैन से न रह रहे होते।
हाँ मैं  ये मानती हूँ कि ,वहाँ  की आव्रजन-नीति कठोर है और वे उसका कड़ाई  से पालन भी करते हैं।अगर उन्हें किसी पर शक भी हो जाए तो वे पूरी तसल्ली करके ही मानते हैं-इसमें क्या गलत है ?हमें भी उनसे सीख लेनी चाहिए।मै  ऐसा इसलिए नहीं कह रही कि ,मै  अमेरिका की बहुत बड़ी हिमायती हूँ। बात आज़म खान की तलाशी से शुरू हुई थी .......आज़म खान  समाजवादी पार्टी के एक कद्दावर नेता हैं और मै  उन्हें वाजिब तौर पर ईमानदार भी मानती हूँ ,जो वे कहते हैं ,करते भी हैं।अच्छा होता अगर वे अमेरिका में हुई तलाशी को निरपेक्ष भाव से लेते और वापस आकर अपने देश में भी वैसी ही कड़ी सुरक्षा -व्यवस्था की हिमायत करते ...........पर ये तो हो न सका ...........जाते-जाते यही कहूँगी कि, 'हंगामा है क्यूँ बरपा ......तलाशी ही तो ली है,आपका वजूद तो  नहीं।