लघु कथा -'श्रेय '
प्रज्ञा ने बारहवीं की परीक्षा में पूरे प्रदेश में ,लड़कियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। छोटे से कसबे के उस साधारण से घर में आज अखबार वाले प्रज्ञा का इंटरव्यू लेने आये हैं। पिता पारसनाथ बढ़-चढ़ कर बोल रहे हैं -"जी हाँ ! हमने अपनी लड़की और लड़कों में कभी कोई भेद-भाव नहीं किया ,बेटी के संघर्ष में हमेशा उसका साथ दिया। परदे के पीछे खड़ी , माँ पारो याद कर रही है -वो दिन जब अपनी सोने की अँगूठी देकर उसने दाई को मनाया था कि ,वो उसका गर्भपात ना करे ………,वो दिन जब सात माह का गर्भ पता चलने पर पति ने उसे पीटा था और वो मातम जब प्रज्ञा ने जन्म लिया था। अखबार वाले ने पूछा,"तो बेटी प्रज्ञा अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देना चाहेगी?"प्रज्ञा ने हाँ में सिर हिलाया ,साथ ही माँ को परदे के पीछे से खींचती हुई बोली -"पर मेरे इस दुनिया में आने का श्रेय केवल मेरी माँ को देना चाहूंगी। "
प्रज्ञा ने बारहवीं की परीक्षा में पूरे प्रदेश में ,लड़कियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। छोटे से कसबे के उस साधारण से घर में आज अखबार वाले प्रज्ञा का इंटरव्यू लेने आये हैं। पिता पारसनाथ बढ़-चढ़ कर बोल रहे हैं -"जी हाँ ! हमने अपनी लड़की और लड़कों में कभी कोई भेद-भाव नहीं किया ,बेटी के संघर्ष में हमेशा उसका साथ दिया। परदे के पीछे खड़ी , माँ पारो याद कर रही है -वो दिन जब अपनी सोने की अँगूठी देकर उसने दाई को मनाया था कि ,वो उसका गर्भपात ना करे ………,वो दिन जब सात माह का गर्भ पता चलने पर पति ने उसे पीटा था और वो मातम जब प्रज्ञा ने जन्म लिया था। अखबार वाले ने पूछा,"तो बेटी प्रज्ञा अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देना चाहेगी?"प्रज्ञा ने हाँ में सिर हिलाया ,साथ ही माँ को परदे के पीछे से खींचती हुई बोली -"पर मेरे इस दुनिया में आने का श्रेय केवल मेरी माँ को देना चाहूंगी। "