October 20, 2016

वैसे तो लखनऊ से नाता बहुत पुराना है ,पर पिछले सोलह सालों से मैं लखनऊ में ही हूँ। तो त्यौहारों  का मौसम हो और एक चक्कर अमीनाबाद का न लगे -ये कभी हुआ नहीं। लखनऊ का अमीनाबाद बाज़ार यहाँ के मुख्य बाज़ारों  में है और यह लगभग १६५ साल पुराना बाज़ार  है। जो सामान आपको कहीं नहीं मिले वो अमीनाबाद में ज़रूर मिल जायेगा। मेरे बचपन की बहुत सी यादें अमीनाबाद से जुड़ी  हैं। हमारी दादी जब हमारे घर इलाहाबाद  में होतीं तो दिन भर में एक बार "नखलऊ "और अमीनाबाद का ज़िक्र ज़रूर होता। हम सब उनकी इस बात के लिए खिंचाई भी खूब करते। मेरी मँझली  बुआ जो बहुत सालों  तक अमीनाबाद से सटे  गणेशगंज में रही  ,बाद में महानगर कॉलोनी में शिफ्ट होने के बाद भी उनका अमीनाबाद प्रेम अंत तक कम  नहीं हुआ ,मुझे याद है एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि ,अगर वो 'कौन बनेगा करोड़पति 'में एक करोड़ जीत जाएँ तो सब अमीनाबाद में ही खर्च कर आएंगी। आज बुआ नहीं हैं पर उनकी ये बात याद करके आज भी हम खूब हँस  लेते हैं। और हाँ ! हमारी एक परमप्रिय भाभीजी हैं जो वहीँ पहले उदयगंज में रहती थीं ,कहती हैं -'भई  हमें तो  छींक भी आती थी तो हम अमीनाबाद जाकर ही छींकते थे.' पुराने लखनऊ बाशिंदों का अमीनाबाद प्रेम ऐसा ही है। तो साल भर हम भले ही मॉल में चप्पल घिसें ,दीवाली से पहले अमीनाबाद जाये बिना अपना काम नहीं चलता। इस बार भी झोला लटकाये घूम ही आये प्रताप मार्केट और मोहन मार्केट  की गलियों में।

October 09, 2016

समय जैसे पंख लगा कर उड़ गया और देखते ही देखते मेरी प्यारी बेटी 25 बरस की हो गयी। आज उसके जन्म-दिन पर उसके लिए कुछ पंक्तियाँ -

"पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

देखे हैं जो तुमने सपने ,अपने मन में
पूरे हों सब -कोशिशों में ऐसा तुम रँग  भर देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

ज़िन्दगी की दुश्वारियों में ,उलझ ना  जाना नादानी में
क़शमक़श  के हर पल में ,ख़ुद  को एक आवाज़ देना,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

चुप ना  रहना ,कभी ना  सहना -बेतरह और बेवज़ह
मन के हर ग़म ,हर पीड़ा को हमेशा तुम अलफ़ाज़ देना ,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

गुम ना  होना झूठ ,बनावट और फ़रेब  की अंधी गलियों में
अपनी डोर रख अपने हाथ खुद को ऊँची उड़ान देना,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना। "