June 26, 2014

क्योंकि सपने कभी नहीं मरते..................

वो मेरी ही हमउम्र महिला थीं। शायद मुझसे कुछ बड़ी या छोटी हों। मैं उनसे लगभग हर शाम मिलती थी। जिम से घर के रास्ते में शॉपिंग काम्प्लेक्स में किसी जनरल स्टोर पर या सब्जी की दूकान पर या फिर दवा की दुकान  पर। यह एक संयोग ही होता था ,मेरी इसके अलावा  उनसे कोई पहचान नहीं थी। मैंने देखा था कि ,उनके चेहरे पर एक अजीब सी  उदासी पसरी रहती थी। कई दिनों की मुलाक़ात के बाद हमारे बीच हलकी सी मुस्कराहट का आदान-प्रदान होने लगा था। उस रोज़ उनसे सब्जी की दुकान पर मुलाक़ात  हुई। हम दोनों ही अपनी-अपनी खरीदारी में लगे थे कि ,अचानक सब्जी वाले ने उनसे पूछा  "आज आप बहुत खुश लग रही हैं ,क्या बच्चे आने वाले हैं ?" उन्होंने हँस  कर कहा "हाँ पूरे एक साल बाद दोनों बच्चे एक साथ आ रहे हैं। " मैंने भी ग़ौर  किया कि , आज वो काफी उत्साहित दिख रही थीं। सब्जी वाले की संवेदनशीलता मुझे छू  गयी और उस रोज़ मैं उससे बिना मोल-भाव किये सब्जी लेकर चल पड़ी। रास्ते में सब्जी के थैले को इस काँधे  से उस काँधे  करती हुई मैं उन महिला के बारे में ही सोचती रही कि ,आज वो कितना खुश थीं और आने वाले कुछ दिन उनके लिए कितनी ख़ुशी लेकर आयेंगें।  मुझे भी अपने बच्चों की याद आई। फिर मैंने सोचा  कि , मेरी जैसी अधिकाँश महिलाओं को उम्र के इस पड़ाव पर एक जैसी परिस्थितियों का ही सामना करना पड़ता है-पति अपने करियर के चरम को छूने की ज़द्दोज़हद में ,बच्चे बड़े होकर पढाई या करियर में व्यस्त -घर से बाहर,माता- पिता और सास -श्वसुर या तो साथ छोड़ चुके होते हैं या उम्र के अंतिम पड़ाव पर शारीरिक व्याधियों से जूझते हुए और सबसे बढ़ कर स्वयं के शरीर में भी हार्मोनल परिवर्तन तेजी से हो रहे होते हैं और थकान व् चिड़चिड़ापन हर वक्त तारी रहता है। जो महिलाएं घर से बाहर काम के सिलसिले में निकलती हैं ,उन्हें भी इन विषम परिस्थितियों से दो चार होना ही पड़ता है। घर में रहने वाली महिलाओं का रूटीन भी बदल जाता है और उन्हें खाली  वक्त मिलने लगता है पर इस वक्त में करें क्या -ये समझ नहीं आता। इतने वर्षों पति और बच्चों के इर्द -गिर्द घूमती दिनचर्या में उनका अपना वक्त भी जो कहीं ग़ुम  सा हो गया था ,वही अब उन्हें खाने को दौड़ता है। उन महिला के चेहरे पर भी उदासी का कारण भी यही खालीपन ही था। मुझे लगता है कि  ,इस वक्त हर महिला को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत और स्वयं के प्रति थोड़ा सा स्वार्थी हो जाना चाहिए।हममे  से प्रायः सभी के मन में कुछ न कुछ करने की या सीखने की चाहत रहती ही है। कोई न कोई सपना सभी के मन में कुलबुलाता ही है। जीवन की आपा -धापी में हम इस बेचैनी को 'समय कहाँ है 'के बहाने नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। यही समय है जब हमें अपने मृतप्राय शौकों को फिर से जीवित कर लेना चाहिए और सपनों की छूटी डोर को आगे बढ़ कर थाम लेना चाहिए। देर कभी नहीं होती और कुछ भी शुरू करने के लिए उम्र कोई बंधन नहीं। क्योंकि ,सपने कभी नहीं मरते  ,जीवन की अंतिम साँस  तक वो हमारे प्रयासों के इंतज़ार में रहते हैं। 

June 15, 2014

नमस्कार! दोस्तों ,आज पितृ -दिवस (फादर्स -डे ) के अवसर पर आप सबसे पुनः रूबरू हूँ। दोस्तों ,पिता का आशीष और स्नेह ,हम सबके साथ आजीवन रहता है-चाहे वो शरीर में हों या ना  हों। पिता के साथ ,स्नेह ,प्यार -दुलार ,डाँट -अनुशासन से जुड़ीं  यादें ,जीवन -पर्यन्त हमें सहेजती और संभालती  रहती हैं।

यह एक संयोग ही है कि , आज फादर्स -डे पर मेरे पापा मुझसे बहुत दूर अमेरिका में हैं और बीमार हैं। उनसे दूरी की छटपटाहट में मैंने भी कुछ लिखा है ,साझा कर रही हूँ।
             
         आदरणीय पापा ,
                                    याद नहीं ,इससे पहले कब आपको ख़त  लिखा था। फ़ोन ने हमारे संवाद को कितना औपचारिक बना दिया है। कई बार आपसे बात "आप ठीक हैं ना ?" से आरंभ  होती है और "ठीक है पापा अपना ध्यान रखियेगा " पर ख़त्म होती है।  फ़ोन रखने के बाद भी बहुत कुछ कुलबुलाता है मन में -जो कभी कह नहीं पाती ,आज कहती हूँ…………पापा माँ  के आँचल में अगर ममता की गर्माहट मिली तो आपका स्नेह सदैव ठंडी छाँव के समान  रहा है।
                                             आज भी याद है -आपका हाथ पकड़ कर सड़क पार करना ,विक्की पर आपके पीछे बैठ कर आपकी बुशर्ट को कस  कर मुठ्ठी में भींचना ................ वो सहमना आपकी आँखों से और रिपोर्ट -कार्ड पर  साइन करवाते समय आपके मनोभावों को अपनी  आँखों से पढ़ना।आपका  हँसना  माँ  की शिकायतों पर और फिर हमें सीमाओं में रहना सिखाना। आज उम्र के इस पड़ाव पर भी जब मैं खुद दो युवा बच्चों की माँ हूँ,आपकी सीख और आदर्शों को गुनती हूँ। मुझे गर्व है कि  ,आपने पैसा नहीं नाम कमाया और हमारी फरमाइशों को पूरा करते समय अपने त्याग का एहसास तक नहीं होने दिया। पापा ,क्या हुआ गर आज आप ज्यादा चल नहीं सकते ,जीवन रूपी मैराथन में आपने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। मुझे विश्वास  है कि  ,आप इस बार भी उठ कर खड़े होंगे ,क्योंकि आपको पता है कि  ,हमें आज भी आपकी उतनी ही ज़रुरत है।
                                                                                                                      आपकी प्रीति  

June 07, 2014

वर्ण के उच्चारण मे जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्राएं दो प्रकार की होती हैं। गुरु और लघु। गुरु मात्रा के उच्चारण मे लघु से दुगुना समय लगता है।

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

ये सारे स्वर गुरु हैं और इनसे युक्त हर व्यंजन भी गुरु माना जाएगा।

इसके अलावा अनुस्वार युक्त व्यंजन या स्वर भी गुरु माने जाएंगे। जैसे - अंत(२१), कंस(२१), हंस(२१)

विसर्ग युक्त स्वर या व्यंजन भी गुरु माने जाते हैं। जैसे - पुनः (१२), अतः (१२)

चंद्रबिंदुयुक्त व्यंजन या स्वर लघु माने जाते है यदि वो किसी अन्य गुरु स्वर से युक्त न हो तो। जैसे - हँस (११), विहँस (१११)

लेकिन आँख (२१), काँख (२१)

आधे वर्ण की गणना नहीं होती किंतु वो आधा वर्ण अपने पूर्ववर्ती लघु वर्ण के साथ मिलकर उसे गुरु कर देता है परंतु यदि पूर्ववर्ती वर्ण गुरु ही है तो कोई अंतर नहीं आएगा वो गुरु ही रहेगा। जैसे - 

इच्छा - २२
शिक्षा - २२
आराध्य - २२१
विचित्र - १२१
पत्र - २१

यहाँ कुछ अपवाद भी हैं जिनका ध्यान रखा जाना जरुरी है। कुम्हार (१२१), कन्हैया (१२२), तुम्हारा (१२२), उन्हें (१२), जिन्हें (१२), जिन्होनें (१२२) जैसे शब्दों में आधा वर्ण अपने पूर्ववर्ती लघु वर्ण को गुरु नहीं करता।

अ, इ, उ आदि स्वर लघु होते हैं और इनसे युक्त व्यंजन भी लघु ही होंगे। जैसे - कम (११), दम (११), अंतिम (२११), मद्धिम (२११), कुमार (१२१), तुम (११)
मुक्तक



"भूखे पेट , नंगे बदन बिलखता बचपन
गरीबी के अभिशाप से सिसकता है मन
देखने को रोज़ चूल्हे से उठता धुआँ
हाड़ -तोड़ मेहनत  से ना  थकता ये  तन। "



"ज़िन्दगी को समझते हैं एक जुआ
प्रतिक्षण  लाँघते  मौत का कुआँ
ये  लत है नशे की गफलतों की
घुटता  है मन ,साँसे धुआँ -धुआँ। "


"ये दुनिया है नशे की ग़फ़लतों  की
जिंदगी से दूर मौत से उल्फ़तों  की
साँसे धुआँ  औ क़तरा -क़तरा वज़ूद
अल्लाह! आरज़ू .......  तेरी रहमतों की "