November 07, 2013

ध्यानमय जीवन शैली 

                                                  "मैं कौन हूँ ?"

 गुरज़िएफ ने एक कोने से इस विधि का प्रयोग किया। सिर्फ यह स्मरण रखना है कि ,मैं कौन हूँ। रमण  महर्षि ने इसका प्रयोग दुसरे कोने से किया। उन्होंने "मैं कौन हूँ " पूछने को एक ध्यान बना दिया। परन्तु मन जो भी उत्तर तुम्हे दे सकता है ,उस पर विश्वास मत करो। मन कहेगा "यह क्या नासमझी की  बात तुम पूछ रहे हो ,तुम यह हो ,वह हो , शिक्षित हो ,अशिक्षित हो ,अमीर हो या गरीब हो। "मन उत्तर देता ही रहेगा पर पूछते ही चले जाओ। कोई उत्तर स्वीकार मत करो ,क्योंकि ,मन के द्वारा दिए सभी उत्तर झूठे हैं। 
वे उत्तर तुम्हारे झूठे हिस्से से आते हैं। वे शब्दों से आते हैं ,शास्त्रों से आते हैं ,संस्कारों से आते हैं,समाज से आते हैं ,दूसरों से आते  हैं। पूछते ही जाओ। "मैं कौन हूँ "के इस तीर को गहरे और गहरे प्रवेश करने दो। एक क्षण ऐसा आयेगा ,जब कोई उत्तर नहीं आयेगा। वही  सम्यक क्षण है। अब तुम उत्तर के करीब आ रहे हो,क्योंकि मन शांत हो रहा है या तुम मन से बहुत दूर चले गए हो। जब कोई उत्तर नहीं होगा और तुम्हारे चारों  ओर  एक शून्य निर्मित हो जायेगा ,तो तुम्हारा प्रश्न पूछना व्यर्थ मालूम होगा। किससे  तुम पूछ रहे हो ?क्योंकि उत्तर देने वाला अब कोई नहीं है। अचानक ,तुम्हारा प्रश्न पूछना भी बंद हो जायेगा। प्रश्न के साथ ही मन का अंतिम अंश भी विलीन हो गया क्योंकि ,वह प्रश्न भी मन का ही हिस्सा था। वे उत्तर भी मन के थे और प्रश्न भी मन का था। दोनों विलीन हो गए तो अब 'तुम' हो। 
                                                       इस प्रयोग को करो ,यदि तुम लगन से लगे रहे तो ,हर सम्भावना है कि यह विधि तुम्हे सत्य की  झलक दे जाए -और सत्य ही शाश्वत है। 
                                                                                                         ओशो