July 31, 2013

   लघु-कथा.....                         " मूर्ति "

"आज  मंत्री जी की कोठी दुल्हन की तरह सजी है.....  आखिर उनकी इकलौती बेटी की शादी जो है. उनके विभाग के अफसर पिछले एक महीने से इस शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं ,पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. मंत्री जी का घर मेहमानों से खचाखच भरा है. बड़े-बड़े पंडाल ,गोल मेजों के चारो ओर  बैठने की कुर्सियां ,एक ओर मशहूर ग़ज़ल-गायक कार्यक्रम पेश कर रहे हैं ,तो दूसरी ओर  वर-वधू  के बैठने के लिए स्टेज बनाया गया है। एक कोने में बड़ी सी मेज़ पर तोहफों का अम्बार  लगा है।  खाने-पीने की भी बड़ी आलीशान व्यवस्था है,देसी-विदेशी हर प्रकार के लज़ीज़ व्यंजन हैं........ वहीँ बीचो-बीच एक फव्वारा चल रहा है, जिसके पास एक छोटी सी बच्ची की मूर्ति लगी है,ऐसा लगता है -अभी बोल पड़ेगी।
   आधी रात तक शादी का जश्न चलता रहा....... सबने खूब खाया और खूब बर्बाद किया। अब मेहमान लौट रहे हैं , फव्वारा अभी भी चल रहा है ,पर मूर्ति शायद किसी ने लुढका दी है.अरे-रे.......  ये क्या एक आदमी आकर उस मूर्ति को हिला  कर चिल्ला रहा है,"ये तो सो गयी......  सारा शो ख़राब कर दिया ,कहाँ है इसका बाप ?"
 जी हाँ ! मूर्ति नहीं ये छोटी सी बच्ची है. बच्ची का पिता हाथ जोड़ कर खड़ा है ,"साहब बच्ची भूखी है,थक कर सो गयी शायद।"   " चुप्प " आदमी दहाडा। उस आदमी की  डांट  सुन कर वह  चुपचाप बच्ची को लेकर वहाँ  से निकल जाता है। अगली सुबह शहर में चर्चा थी.......  मंत्री जी के यहाँ एक हज़ार लोगों ने खाना खाया ,पर किसी को पता भी न चला कि , एक मूर्ति  वहाँ  से भूखी भी गयी.......


                                                                                                                         प्रीति  श्रीवास्तव
                                                                                                                       5/188, विपुल खंड
                                                                                                                       गोमतीनगर ,लखनऊ।
                                                                                                                         उत्तर प्रदेश। 

July 30, 2013

शीर्षक पढ़ कर आप जो सोच रहे हैं वैसा बिलकुल नहीं है ,जैक्स और जेनिफर कोई दो इंसान नहीं ,कुत्ते और कुतिया का नाम है।  ये खुशनसीब जोड़ा अमृतसर का है। आगामी ११ सितम्बर को इनकी शादी अमृतसर में बड़े धूमधाम से होना तय है ,शादी से पहले सगाई और मेंहदी की रस्म भी होगी। रुकिए ,और सुनिये…शादी के बाद हनीमून लन्दन में मनेगा।सुना है ,बड़ी महफ़िल सजेगी, मशहूर पंजाबी गायक साबर कोटी कार्यक्रम पेश करेंगे ,नामी -गिरामी लोग शादी में शामिल होंगे।आज सुबह अख़बार में ये खबर पढ़ कर पहले तो मुझे खूब हँसी  आयी ,फिर इन कुत्तों के मालिकों के मानसिक-दिवालियेपन पर तरस….. चलो पशु-प्रेमी होना अच्छी बात है ,और अगर धन अधिक है तो ,उसके संचय की प्रवृत्ति भी ठीक नहीं है,उसे खर्च करना ही चाहिए ,पर ये क्या तरीका हुआ ? जैक्स और जेनिफर को तो इल्म भी नहीं होगा कि ,जिस धन का कहीं सार्थक उपयोग हो सकता था ,उसे उनकी तथाकथित शादी पर बहाया जा रहा है, अतः उन्हें तो मैं दोष नहीं देती ,किन्तु श्री आर के खोसला और बावा महोदय (जैक्स और जेनिफर के मालिक ) की अक्ल पर पत्थर पड़े हैं क्या ?अरे! वे 'विवाह'जैसे पवित्र संस्कार का तो मजाक उड़ा  ही रहे हैं ,साथ ही मजाक उड़ा  रहे हैं उन हजारों-लाखों गरीब इंसानों का, जो पैसों की कमी के कारण  अपनी बेटियों का विवाह नहीं कर पाते हैं.उसी अमृतसर में उनकी कोठियों के आस-पास ही ऐसे लोग मिल जायेंगे। लानत है ,ऐसी दरियादिली पर जिससे किसी का भला ना हो और आग लगे ऐसे पैसों में जिसका सदुपयोग ना हो। विडंबना देखिये -जिस देश में गरीबों के खाने के लिए पाँच  रुपये की राशि पर्याप्त मानी  जाती हो ,वहीँ कुत्तो की शादी पर लाखों के वारे-न्यारे होते हैं। ऐसा विरोधाभास शायद ही दुनिया में कहीं और देखने को मिले…। हम-आप तो ऐसी ख़बरों पर अपना सिर  ही धुन सकते है… वो भी कब तक ?

July 03, 2013

uttarakhand trasdi....

उत्तराखंड त्रासदी को आज पंद्रह दिन बीत गए ,पिछले पंद्रह दिनों में अख़बारों में ,ब्लॉग पर बहुत कुछ पढ़ा और टीवी पर बहुत कुछ देखा ......मन बहुत व्यथित है। लाखों लोग सही-सलामत घरों में लौट आये तो हज़ारों लोग काल के मुँह  में समा गए।चरों धाम में हुई प्रलयंकारी तबाही के कारणों के बारे में खूब लिखा,पढ़ा और सुना जा चुका है। प्रकृति ने अपने दोहन का बदला लिया और जम  कर लिया।ये दुःख की बात है कि ,ऐसा हमारे देश में ही है, जहाँ हमने प्रकृति से सिर्फ लेना ही सीखा है ,धरती, नदी और पहाड़ों का संरक्षण करना हमें आया ही नहीं , ऐसा हमारे देश में ही है जहाँ ,लाखों लोग चार-धाम की दुर्गम यात्रा भगवान्-भरोसे ही करते हैं ,इक्कीसवीं सदी में जब मौसम की भविष्यवाणी सौ प्रतिशत सही होनी चाहिए वहाँ पर्याप्त संसाधन ही नहीं हैं। ऐसा हमारे देश में ही है जहाँ चार-पाँच  वर्ष के मासूम बच्चे जिन्हें 'ईश्वर 'और 'जीवन' जैसे गूढ़ शब्दों का अर्थ ही नहीं मालूम ,वे भी चार-धाम की यात्रा पर निकलते हैं ,ऐसा हमारे देश  में ही है जहाँ लोग केवल दिखावे के लिए एक ही तीर्थ-स्थान की कई कई बार यात्रा करते हैं। विडंबना ही है कि ,इस दुःख की घडी में भी हमारे माननीय-गण दिल्ली और देहरादून में सियासत की गुलेल से एक-दूसरे पर निशाना साध रहे थे,हम लानत भेजते हैं उन सभी पर ,लेकिन हमें नाज़ है अपने देश की सेना पर ,जिसने ना दिन देखा न रात ,ना पहाड़ देखा ना खाई ,ना नदी देखी  ना पथरीली डगर ,हर जगह ,हर मोर्चे पर सेना ने अपनी सार्थकता सिद्ध की है ,ITBP और NDRF के जवानों ने भी सराहनीय काम किया है ,उन सभी जांबाजों को मेरा सलाम ! अपनों को खोने का गम तो समय के साथ ही भरेगा पर अभी तो सबसे बड़ी चुनौती है तबाह हुए गाँवों के पुनर्वास की। चारों धाम में जीवन सामान्य रूप में लौटे और लोग वहाँ  पुनः जाएँ ,इसमें अभी काफी वक़्त लगेगा। कैसा होगा वहाँ  का स्वरुप और कैसी होंगी सभी व्यवस्थाएं -ये सब अभी भविष्य के गर्त में ही है।  सैकड़ों दौरे होंगे ,हज़ारों मीटिंगे होंगीं ,लाखों ठेके बटेंगे और करोड़ों ,अरबों का वारा-न्यारा होगा ,फिर भी नतीजा क्या होगा पता नहीं।पर यही वो वक़्त है जब सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने चाहिए।मेरी साधारण बुद्धि से मुझे कुछ बातें समझ में आती हैं ,उनका उल्लेख करना चाहूंगी ......

१ -चारों  धाम में मंदिर -परिसर के पुनर्वास में प्रकृति के संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाए।
२- धर्मशालाएं और दुकानें सुरक्षित स्थान पर ही बनवाई जाएँ ,इस सम्बन्ध में GSI का सर्वेक्षण उपयोगी हो सकता है।
३- वहाँ  जाने वाले तीर्थयात्रियों की न्यूनतम आयु चालीस वर्ष व् अधिकतम आयु साठ वर्ष ही हो।
४-जीवन में बस एक बार ही वहाँ  जाने की अनुमति हो ,इस सम्बन्ध में आधार -कार्ड का सहारा लिया जा सकता है।
५-एक निश्चित समयावधि में निश्चित संख्या में ही श्रद्धालु मंदिर-परिसर में हों।
६-मौसम -विभाग को अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त किया जाए तथा मौसम की भविष्यवाणी सौ प्रतिशत सच हो।
७ -NDRF का और विस्तार और सुसंगठन किया जाए तथा यात्रा के हर पड़ाव पर उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए।
८ -आस-पास के पहाड़ों पर मार्ग व् दिशा -सूचक बोर्ड लगाए जाएँ।
९ - तीर्थ-यात्रिओं के लिए चारों धाम की यात्रा सुगम हो ,इससे कहीं पहले वहाँ  के गाँवों में जीवन सामान्य हो -ये सुनिश्चित होना चाहिए।

यही समय है जब हम सबको गंभीरता से सोचना होगा कि ,हम अपने धार्मिक -स्थलों को अपनी आस्था के प्रतीक के रूप में देखना चाहते हैं या उसे पर्यटक -स्थल बना कर वहाँ  की पवित्रता और शान्ति को नष्ट करना चाहते हैं।निश्चय ही चुनौतियाँ बड़ी हैं और कठिन भी। कब,क्या और कैसे होगा -ये तो वक़्त ही बताएगा।
अंत में जाने से पहले इस त्रासदी से प्रभावित हर इंसान और उत्तराखंड के ज़र्रे-ज़र्रे की ओर  से प्रार्थना स्वरुप रामायण की ये चौपाई कहना चाहूँगी ......."मोरि  सुधारिहीं सो सब भाँति ,जासु कृपा नहीं कृपा अघाती "