August 30, 2015

"आज सहेजा  है एक बार फिर  बिखरे मन को
धूमिल आशाओं में छिपे ,  मन के उजलेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
उलझे लौकिक  मकड़जाल में,मन के सुलझेपन को
आज सहेजा हैएक बार फिर बिखरे मन को
पूर्ण समर्पण में भी  मिले, मन के उस  अधूरेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
भूल गयी थी स्वयं को जिसमे ,मन के उस भोलेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
झूठे आडम्बर में रीते ,मन के अनमनेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
पल -पल मर कर भी , मन में जीते  नवजीवन को
आज  सहेजा है एक बार फिर  बिखरे मन को "


June 12, 2015

प्रिय  प्रांशु के जन्म-दिन पर   उसके लिए कुछ पंक्तियाँ

"जीवन -पथ पर  बढ़ते जाना
रुक  ना  जाना थक कर तुम ,
हर सोपान  चढ़ते जाना।
जीवन-पथ पर बढ़ते जाना
सुख के सपने खूब सँजोना ,
पर दुःखों से लड़ते जाना।
जीवन -पथ पर बढ़ते जाना
मिटा कर मन से हर नफरत ,
प्रेम की भाषा गढ़ते जाना।
जीवन-पथ पर बढ़ते जाना
लेना तुम  सीख हर ठोकर से ,
पथ के कंटक चुनते जाना।
जीवन-पथ पर बढ़ते जाना
भूल ना  जाना अपनों को ,
पर ग़ैरों  से भी मिलते जाना।
जीवन -पथ पर बढ़ते जाना
खुश रहना औ ख़ुशी लुटाना,
मिले जो ग़म तो सहते जाना।
जीवन-पथ पर बढ़ते जाना "
रखना लक्ष्य सदैव  शिखर का ,
और जड़ों को सींचते जाना।
जीवन-पथ पर बढ़ते जाना "
                                         प्रीति 

February 09, 2015

नमस्कार ! दोस्तों आज पुनः रूबरू हूँ आप सब से।  दोस्तों ,जन्म से मृत्यु तक की यात्रा में हम बहुत कुछ संजोते और खोते हैं। पर  पाने और खोने के इस क्रम में एक पूँजी जो हम हमेशा सहेजते रहते हैं ,वो है रिश्ते-नातों की। कुछ रिश्ते तो जन्म के साथ ही बन जाते हैं और कुछ ,ज्यों-ज्यों हम जीवन यात्रा में आगे बढ़ते जाते हैं हमारे साथ जुड़ते जाते हैं। ये भी सत्य है कि , रिश्ते बनाना जितना आसान है ,उन्हें निभाना उतना ही मुश्किल! कई बार कुछ रिश्ते किन्हीं वज़हों से बोझ बन जाते हैं तो कुछ रिश्ते जीवन को महकाते रहते हैं।
इसी विषय पर आपको अपनी भावनाएं व्यक्त करनी हैं एक क्षणिका के माध्यम से। मुझे आप सबकी क्षणिकाओं का इंतज़ार रहेगा। प्रस्तुत है मेरी एक क्षणिका---

"रिश्ते तो होते हैं
पौध समान  ……
उन्हें भी चाहिए
भावनाओं की खाद
गुंज़ाइशों का पानी
थोड़ी धूप  सामंजस्य की
थोड़ी छाँव समझदारी की
तभी निभते हैं वे संपूर्णता के साथ
अन्यथा चुभते रहते हैं
ठूँठ  की तरह उम्र भर !"