August 30, 2015

"आज सहेजा  है एक बार फिर  बिखरे मन को
धूमिल आशाओं में छिपे ,  मन के उजलेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
उलझे लौकिक  मकड़जाल में,मन के सुलझेपन को
आज सहेजा हैएक बार फिर बिखरे मन को
पूर्ण समर्पण में भी  मिले, मन के उस  अधूरेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
भूल गयी थी स्वयं को जिसमे ,मन के उस भोलेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
झूठे आडम्बर में रीते ,मन के अनमनेपन को
आज सहेजा है एक बार फिर बिखरे मन को
पल -पल मर कर भी , मन में जीते  नवजीवन को
आज  सहेजा है एक बार फिर  बिखरे मन को "