नमस्कार! आज एक अंतराल के बाद पुनः आप सबसे रूबरू हूँ। दोस्तों ,ये तो आप भी मानेंगे कि,जीवन में किसी भी संबंध के निर्वहन के लिए परस्पर अहम् के सतुलन का होना बहुत ज़रूरी होता है। छोटी-छोटी बातों पर अहम् का टकराव परिवार में बड़े विघटन का कारण बनता है। विनोदपूर्ण लहज़े में कहें तो ,हमारी अकड़ तो अनब्रेकेबल होती है परन्तु हमारा अहम् बड़ा ही fragile होता है। आज मैं आपको "अहम् " पर अपनी रचनाएं पोस्ट करने के लिए आमंत्रित कर रही हूँ। किसी भी विधा में लिखें ,पर लिखें ज़रूर। प्रस्तुत हैं चंद पंक्तियां
"इको फ्रेंडली हो न हों ,ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
त्याग देते जीर्ण-शीर्ण ,हम अपने परिवेश से ,
पर पुराने गिले -शिकवे ज्यों के त्यों हैं अभी।
इको फ्रेंडली हो न हों ,ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
हर किसी को पर कहते सॉरी ,हम कितने आराम से,
बस संवेदना अपनों के लिए नहीं जगी है कभी।
इको फ्रेंडली हो न हों ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
बात -बात पर हर्ट होता ये नाज़ुक नाज़ुक अहम् ,
भूलेंगे दूसरों के दोष, बात बनेगी तभी।
इको फ्रेंडली हो न ईगो फ्रेंडली हैं सभी। "
"इको फ्रेंडली हो न हों ,ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
त्याग देते जीर्ण-शीर्ण ,हम अपने परिवेश से ,
पर पुराने गिले -शिकवे ज्यों के त्यों हैं अभी।
इको फ्रेंडली हो न हों ,ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
हर किसी को पर कहते सॉरी ,हम कितने आराम से,
बस संवेदना अपनों के लिए नहीं जगी है कभी।
इको फ्रेंडली हो न हों ईगो फ्रेंडली हैं सभी।
बात -बात पर हर्ट होता ये नाज़ुक नाज़ुक अहम् ,
भूलेंगे दूसरों के दोष, बात बनेगी तभी।
इको फ्रेंडली हो न ईगो फ्रेंडली हैं सभी। "