May 30, 2014


यादें-----दो क्षणिकाएँ



स्मृति -पटल पर है अंकित
बचपन की यादों का कोलाज
वो माँ का आँचल,
पिता का साया
पेड़ पर चढ़ना
नंगे पाँव दौड़ना
वो उन्मुक्त ,बेपरवाह
साँसों की धक-धक
सुनाई देती है अब भी
कुछ तस्वीरें आज
मिटाना चाहती हूँ
पर बचपन की यादें
तो अमिट होती हैं ना ?
......................
अक्सर आते हैं
अतीत के सागर से
कुछ उफ़ान
लाते हैं संग में
भूली यादों के
ज्वार -भाटे
मैं किनारे ही खड़ी
इंतज़ार करती हूँ
उनके लौट जाने का
मिल जाते हैं कुछ सीप
यादों के तुम्हारी
सहेज लेती हूँ
ज़ेहन में
गुज़रे पलों के मोती

May 23, 2014






अभय-दान 


जगदीश बाबू पिछले बीस दिनों से कोमा में हैं। एक -एक करके शरीर के सभी अँग  जवाब दे रहे हैं ,अब तो डॉक्टरों  ने भी उम्मीद छोड़ दी है। पत्नी निर्मला  उनके सिरहाने ही बैठी रहती हैं। शहर का बड़ा अस्पताल ,नामी डॉक्टरों की  टीम ,तीमारदारी के लिए होड़ लगाते लोग.……………… आखिर जगदीश बाबू का बेटा एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जो था। बेटा  प्रफुल्ल और बहू  नीता बेचैनी से बार -बार कमरे का चक्कर लगा कर चले जाते। निर्मला  उनके मनोभावों को साफ़ -साफ़ पढ़ सकती है। बाहर  कोई प्रफुल्ल को सलाह दे रहा है -"साहब गौ -दान करा दीजिये ,प्राण अटके हैं पिताजी के आराम से चले जाएंगे " किसी ने पंडित से संकल्प करने की राय दी। निर्मला  ने नज़र भर ,जगदीश बाबू को देखा और  ह्रदय पर पत्थर रख कर पति के कान में कहा "सुनो जी आप आराम से जाओ ,मैं आपके बिना रह लूंगी "जगदीश बाबू मानो  यही सुनना  चाहते थे,निर्मला  ने उन्हें नए सफर के लिए अभय-दान दे दिया था।  कुछ ही पलों में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
उनका हाथ अब भी निर्मला  के हाथ में है।  कमरे में हलचल बढ़ गयी है और निर्मला  के ह्रदय में भी। 

May 18, 2014

 'क्षणिका '

 "अक्सर आते हैं
 अतीत के सागर से
 कुछ उफ़ान
 लाते हैं संग में
 भूली यादों के
 ज्वार -भाटे
 मैं किनारे ही खड़ी
 इंतज़ार करती हूँ
 उनके लौट जाने का
 मिल जाते हैं कुछ सीप
 यादों के तुम्हारी
 सहेज लेती हूँ
 ज़ेहन में
 गुज़रे पलों के मोती "