लघु- कथा -"बुरी लत" -जगदीश बाबू ,अपने बेटे -बहू ,अमित ,नीता और पोते गट्टू के साथ ही रहते हैं। अपनी पेंशन में से कुछ पैसे बचा कर बाकी ,बहू के हाथ में ही रख देते हैं। गट्टू को दादाजी के साथ ,खेलना और बातें करना बहुत अच्छा लगता है पर माँ नीता उसे हमेशा किसी न किसी बहाने से दादाजी के पास जाने से रोकती है। उसका कहना है कि ,पिताजी को पान मसाला खाने की बुरी लत है और गट्टू को उनके साथ नहीं रहना चाहिए। दोपहर में जब वो सोती है तब भी गट्टू अपने दादाजी से दूर ही रहे ,इसके लिए वह गट्टू को दो घंटे प्ले -स्कूल में भेजना चाहती है। जगदीश बाबू ने बेटे अमित से बात की है कि , वो दो घंटे गट्टू की अच्छी देखभाल कर लेंगे ,पैसे भी बचेंगे और उनका मन भी लगा रहेगा। पति और गट्टू की जिद के आगे नीता की एक न चली।
एक महीने में ही गट्टू ने दादाजी से बहुत कुछ सीख लिया है और खेल-खेल में अच्छे संस्कारों व् जीवन मूल्यों का भी निरूपण हो रहा है। इस बार जगदीश बाबू ने पेंशन बहू के हाथ में रखी तो नीता ने कटाक्ष किया ,"क्यों ?इस बार अपनी बुरी लत के लिए पैसे नहीं रखेंगे ?"जगदीश बाबू ने मुस्करा कर कहा "बहू वो लत तो छूट गयी और अब जो लत लगी है…. उसका कोई मोल नहीं है,वो है मुझे मिला मेरे पोते का साथ ……………… ."
एक महीने में ही गट्टू ने दादाजी से बहुत कुछ सीख लिया है और खेल-खेल में अच्छे संस्कारों व् जीवन मूल्यों का भी निरूपण हो रहा है। इस बार जगदीश बाबू ने पेंशन बहू के हाथ में रखी तो नीता ने कटाक्ष किया ,"क्यों ?इस बार अपनी बुरी लत के लिए पैसे नहीं रखेंगे ?"जगदीश बाबू ने मुस्करा कर कहा "बहू वो लत तो छूट गयी और अब जो लत लगी है…. उसका कोई मोल नहीं है,वो है मुझे मिला मेरे पोते का साथ ……………… ."