April 08, 2014




"राम तुम्हें लेना ही  होगा अब अवतार,
एक बार नहीं ,आना होगा  सौ-सौ बार।
हुई हानि धर्म की ,फैला पाप चहुँ ओर ,
कब आओगे तारण को हे! नाथ पालनहार।


*******************************

थकी वसुंधरा देखो ढोती पापियों का भार ,
कहाँ गया वो सत्यशील  आचरण सदाचार।
एक तुम्हारा ही सहारा ,मत करना अब निराश ,
आ जाओ हे!दशरथनन्दन करने को उपकार।


*********************************

आये थे तुम करने को एक दशानन का संहार ,
सहा तुम्हीं ने था तब भी हे!सृष्टि-सृजनहार।
हैं यहाँ अब शत मुख वाले शत-शत रावण ,
हो प्रगट अब कोटि-कोटि रूपों में कर दो चमत्कार। "

April 07, 2014

             "विस्मृति"


" आजकल भूलने लगी हूँ ,मैं बहुत …… 
 बत्ती जला कर बुझाना या खुला दरवाज़ा उढ़काना ,
 ढूँढती  फिरती हूँ चीज़ें रख कर ,इधर-उधर। 
 अक्सर भूल जाती हूँ किसी के जन्मदिन की  ताऱीख ,
 याद ही नहीं रहता कल फ्रिज़ में रखा था क्या ,
 भूलती हूँ खाना दवा और उठाना आँगन से कपडे। 
 सोचती हूँ ये बढ़ती उम्र का असर है या पुराना ही कोई सिलसिला ,
 क्योंकि भूली तो पहले भी बहुत कुछ थी................ 
 छोड़ कर भुलाया बाबुल का अँगना  और रिवाज़ ,
 भूली थी अपना बचपना और दिल की  आवाज़। 
  भूलती ही आयी हूँ हर कड़वी बात और अपने जज़्बात ,
  फूलों की  महक में भुला कर काँटों की  चुभन ,
 याद ही नहीं कितना अनसुना किया है मन। 
 बिसरा कर सुध घर की  चाहरदीवारी में भूल ही गयी थी खुद को ,
 कहाँ था याद कि ,एक दुनिया देहरी के उस पार भी है ,
 और सपने भी यहीँ बैठे हैं छत की  मुँडेर  पर। 
 पर वो भूलना भी कोई भूलना था ................ 
 इसीलिए सबने भुला ही दिया उन बातों को ,
 अब जो मैं भूलती हूँ ,तो सब कहते हैं -
 तुम्हें भूलने की  बीमारी हो गयी है............ "