आज मैं अपने लिखे एक लघु-उपन्यास का अंश आप सबके साथ साझा कर रही हूँ। इसे मैंने आठ साल पहले लिखा था। इग्नू से रचनात्मक -लेखन के पाठ्यक्रम में ये मेरा प्रोजेक्ट था। मैं किसी को भी टैग नहीं कर रही हूँ ,परन्तु आप सभी की प्रतिक्रिया की मुझे उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी। इसे दो और कहानियों के साथ प्रकाशित करवाने की ईच्छा रखती हूँ।
भग्नांश
"बधाई हो मुक्ता ……बेटी है ,तुम तो बेटी ही चाहती थीं ना ?सच कितनी प्यारी है। "माँ ने बच्ची को नरम गुदगुदे कम्बल में लपेट कर बच्ची को मुक्ता के बगल में लिटा दिया और जब मुक्त ने पहली बार बच्ची को देखा ,तो उसे लगा साक्षात लक्ष्मी जी उसके घर आई हैं। कानों में स्वर गूंजने लगे .............
"महादेवी महालक्ष्मी नमस्ते त्वं विष्णु प्रिये।
भग्नांश
"बधाई हो मुक्ता ……बेटी है ,तुम तो बेटी ही चाहती थीं ना ?सच कितनी प्यारी है। "माँ ने बच्ची को नरम गुदगुदे कम्बल में लपेट कर बच्ची को मुक्ता के बगल में लिटा दिया और जब मुक्त ने पहली बार बच्ची को देखा ,तो उसे लगा साक्षात लक्ष्मी जी उसके घर आई हैं। कानों में स्वर गूंजने लगे .............
"महादेवी महालक्ष्मी नमस्ते त्वं विष्णु प्रिये।