January 11, 2021

ख़ामोशी


❤️

"ख़ामोशी' ,कई बार होती है ...

बंद कमरे में खिड़की की तरह...

आज़ाद कर देती है,अनकहे लफ़्ज़ों को।

अक़्सर होती है,पुल दो दिलों के दरमियाँ

जहाँ होती है,बस नज़रों की बतकही।

बाज़ दफ़ा ये होती है,सवाल और जवाब

एक ही वक़्त पर,एक ही बात का....

किसी ख़ामोश लम्हे में ही मुक़म्मल होती है अधूरी बात..

. .हाँ! ख़ामोशी रख लेती है आबरू कुछ रिश्तों की"

December 14, 2020

 प्रेम

सागर में ठहरी नदी जैसा 

नदी में थम गयी लहर सा

लहर पर रुके स्पंदन जैसा

स्पंदन में अटकी बूँद सा

इतना गहरा था मेरा मन.......


नैनों से ढलकी बूँद में

अधरों के कंपित स्पंदन में

दबी हँसी की लहर में

अंतस की गहरी नदी में 

पढ़ लिया था मैंने मन तुम्हारा..



June 26, 2020

हाँ!मैं ख़ुश हूँ.... ये कहने से पहले वो,
सुनती है..अपनी मौन अकुलाहटों का कोलाहल,
देखती है....अदृश्य अवसादों की धुंध के उस पार,
और पढ़ती है ...अपना मन ,जो सदा रहा अपठित।

May 07, 2017

"एक कॉल खुद को भी........ "
 
उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आयी। अगली सुबह सो कर  उठी तो मस्तिष्क कुछ उलझा सा था। रोज़ की दिनचर्या से निबट कर ,मैंने आदतन फ़ोन उठाया किसी से बात करने के लिए। मैंने लैंडलाइन फ़ोन से जैसे ही नंबर डायल  किया ,अचानक मेरा मोबाइल फ़ोन बजने लगा ,मैंने दूसरे हाथ से मोबाइल फ़ोन उठाया तो स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा - home calling .मैंने खुद को ही फ़ोन मिला दिया था।   खिसियानी सी हँसी हँस कर मैंने फ़ोन काट दिया और अगला नंबर डायल कर  दिया। सारे दिन कई लोगो से फ़ोन पर बात करके , टीवी देख कर ,वॉट्सएप्प पर मैसेजेस पढ़ कर और इधर-उधर  ठेल  कर ,थोड़ी देर सो कर भी जब दिमाग  शांत नहीं हुआ तो मैंने प्रेमचंद का कहानी संकलन उठा लिया। घंटे भर किताब पढ़ कर जब मैं रात में बिस्तर पर लेटी और अन्मयस्कता का ज्वार कुछ  कम हुआ तो अचानक अंतर्मन से आवाज़ आयी -"कॉल किया भी और बात भी नहीं की ". मैं फिर एकबारगी हँस  पड़ी ,पर दूसरे  ही पल लगा -हाँ ! मुझे तो याद ही नहीं मैंने पिछली बार खुद से कब बात की थी। बात छोटी मगर गूढ़ है -आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हम खुद को ही भूलते जा रहे हैं। हमें पूरी दुनिया की खबर है स्वयं को छोड़ कर। कनेक्टिविटी का बुख़ार सब पर चढ़ा  हुआ है पर खुद से सब डिसकनेक्ट हैं। किसी महापुरुष ने सच ही  कहा है -"स्वयं से दूर होना ही आनंद से दूर होने का कारण  है।" जाते -जाते बता दूँ कि ,उस रात मैंने अपने आप से एक वायदा किया कि , हर रोज़ सोने से पहले मैं कुछ देर अपने भीतर भी झाकूँगी। उस सुबह मैंने गलती से ही खुद को फ़ोन मिलाया था ,मगर मेरी उस गलती ने मुझे खुद के पास ला दिया ,तो आप ये गलती कब करने जा रहे हैं ?

October 20, 2016

वैसे तो लखनऊ से नाता बहुत पुराना है ,पर पिछले सोलह सालों से मैं लखनऊ में ही हूँ। तो त्यौहारों  का मौसम हो और एक चक्कर अमीनाबाद का न लगे -ये कभी हुआ नहीं। लखनऊ का अमीनाबाद बाज़ार यहाँ के मुख्य बाज़ारों  में है और यह लगभग १६५ साल पुराना बाज़ार  है। जो सामान आपको कहीं नहीं मिले वो अमीनाबाद में ज़रूर मिल जायेगा। मेरे बचपन की बहुत सी यादें अमीनाबाद से जुड़ी  हैं। हमारी दादी जब हमारे घर इलाहाबाद  में होतीं तो दिन भर में एक बार "नखलऊ "और अमीनाबाद का ज़िक्र ज़रूर होता। हम सब उनकी इस बात के लिए खिंचाई भी खूब करते। मेरी मँझली  बुआ जो बहुत सालों  तक अमीनाबाद से सटे  गणेशगंज में रही  ,बाद में महानगर कॉलोनी में शिफ्ट होने के बाद भी उनका अमीनाबाद प्रेम अंत तक कम  नहीं हुआ ,मुझे याद है एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि ,अगर वो 'कौन बनेगा करोड़पति 'में एक करोड़ जीत जाएँ तो सब अमीनाबाद में ही खर्च कर आएंगी। आज बुआ नहीं हैं पर उनकी ये बात याद करके आज भी हम खूब हँस  लेते हैं। और हाँ ! हमारी एक परमप्रिय भाभीजी हैं जो वहीँ पहले उदयगंज में रहती थीं ,कहती हैं -'भई  हमें तो  छींक भी आती थी तो हम अमीनाबाद जाकर ही छींकते थे.' पुराने लखनऊ बाशिंदों का अमीनाबाद प्रेम ऐसा ही है। तो साल भर हम भले ही मॉल में चप्पल घिसें ,दीवाली से पहले अमीनाबाद जाये बिना अपना काम नहीं चलता। इस बार भी झोला लटकाये घूम ही आये प्रताप मार्केट और मोहन मार्केट  की गलियों में।

October 09, 2016

समय जैसे पंख लगा कर उड़ गया और देखते ही देखते मेरी प्यारी बेटी 25 बरस की हो गयी। आज उसके जन्म-दिन पर उसके लिए कुछ पंक्तियाँ -

"पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

देखे हैं जो तुमने सपने ,अपने मन में
पूरे हों सब -कोशिशों में ऐसा तुम रँग  भर देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

ज़िन्दगी की दुश्वारियों में ,उलझ ना  जाना नादानी में
क़शमक़श  के हर पल में ,ख़ुद  को एक आवाज़ देना,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

चुप ना  रहना ,कभी ना  सहना -बेतरह और बेवज़ह
मन के हर ग़म ,हर पीड़ा को हमेशा तुम अलफ़ाज़ देना ,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना।

गुम ना  होना झूठ ,बनावट और फ़रेब  की अंधी गलियों में
अपनी डोर रख अपने हाथ खुद को ऊँची उड़ान देना,
पँखों  को परवाज़ देना ,ख़ुद  को अलग अंदाज़ देना। "

September 02, 2016

jio  G  भर के

 जी हाँ! मुकेश अम्बानी G आ गए हैं ,टोकरी भर-भर के 4G डाटा लेकर। अब  भरिये अपने-अपने फ़ोन में और हो जाईये गुम अंतरजाल की दुनिया में। पहले ही कौन सा ज़मीं ,आसमाँ और सितारों से दोस्ती थी। अब तो शायद घर के एक कमरे से दूसरे  कमरे में बात भी वीडियो कॉल से होगी। दूरसंचार के क्षेत्र में निश्चय ही यह एक बड़ी क्रांति है। प्रधानमंत्री के डिजिटल भारत के सपने को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम। पर क्या भारत में इसका सही उपयोग होने जा रहा है -शायद नहीं !रहने को छत  नहीं ,शौचालय नहीं ,पर आज हर हाथ में फ़ोन है। परंतु  ये स्थिति डिजिटल भारत के सपने को कितना सार्थक करती है -आप ही बताइये। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में 4G का खुला खज़ाना एक छलावा ही है। ये सच है कि ,बहुतों का जीवन इससे बदलेगा बेहतरी के लिए ,पर बहुतों के लिए ये G का जंजाल ही साबित होगा -ये तय है। जो भी हो मेरे लिए जी भर के जीने का मतलब है -सुबह ओस  भरी दूब  में चलना ,उगता और डूबता सूरज देखना ,पहाड़ों की स्थिरता को अपने अंदर समोना और सागर  में उठती  -गिरती लहरों को देख जीवन के सुख-दुःख में संतुलन कायम रखना। मगर इसके लिए 4G की ज़रुरत ही नहीं।