नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ
पाया है ,सहज ही बहुत कुछ जीवन में ,
पिया है ,गरल भी कभी मन ही मन में ,
सुख -दुःख की इस अदभुत बिसात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
ठिठक कर रुक गए थे कदम जिस मोड़ पर।,
बढ़ चली हूँ वहीँ से टूटी कड़ियाँ जोड़ कर ,
सीखा था जिनसे सम्भलना ,उन हालात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
चाहा था बदलना ,हर बात को जब-तब ,
टकरा कर यूँ ही शिलाओं से बेमतलब ,
न बदली खुद में ही जो ,उस बात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
मोड़ कर मुँह अब सारी निराशाओं से ,
मुक्त हो अतीत की सभी वर्ज़नाओं से ,
आशाओं के नवीन प्रपात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
पाया है ,सहज ही बहुत कुछ जीवन में ,
पिया है ,गरल भी कभी मन ही मन में ,
सुख -दुःख की इस अदभुत बिसात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
ठिठक कर रुक गए थे कदम जिस मोड़ पर।,
बढ़ चली हूँ वहीँ से टूटी कड़ियाँ जोड़ कर ,
सीखा था जिनसे सम्भलना ,उन हालात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
चाहा था बदलना ,हर बात को जब-तब ,
टकरा कर यूँ ही शिलाओं से बेमतलब ,
न बदली खुद में ही जो ,उस बात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।
मोड़ कर मुँह अब सारी निराशाओं से ,
मुक्त हो अतीत की सभी वर्ज़नाओं से ,
आशाओं के नवीन प्रपात को देखती हूँ।
नववर्ष के नवप्रभात को देखती हूँ।