May 30, 2014


यादें-----दो क्षणिकाएँ



स्मृति -पटल पर है अंकित
बचपन की यादों का कोलाज
वो माँ का आँचल,
पिता का साया
पेड़ पर चढ़ना
नंगे पाँव दौड़ना
वो उन्मुक्त ,बेपरवाह
साँसों की धक-धक
सुनाई देती है अब भी
कुछ तस्वीरें आज
मिटाना चाहती हूँ
पर बचपन की यादें
तो अमिट होती हैं ना ?
......................
अक्सर आते हैं
अतीत के सागर से
कुछ उफ़ान
लाते हैं संग में
भूली यादों के
ज्वार -भाटे
मैं किनारे ही खड़ी
इंतज़ार करती हूँ
उनके लौट जाने का
मिल जाते हैं कुछ सीप
यादों के तुम्हारी
सहेज लेती हूँ
ज़ेहन में
गुज़रे पलों के मोती

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