मुक्तक
"भूखे पेट , नंगे बदन बिलखता बचपन
गरीबी के अभिशाप से सिसकता है मन
देखने को रोज़ चूल्हे से उठता धुआँ
हाड़ -तोड़ मेहनत से ना थकता ये तन। "
"ज़िन्दगी को समझते हैं एक जुआ
प्रतिक्षण लाँघते मौत का कुआँ
ये लत है नशे की गफलतों की
घुटता है मन ,साँसे धुआँ -धुआँ। "
"ये दुनिया है नशे की ग़फ़लतों की
जिंदगी से दूर मौत से उल्फ़तों की
साँसे धुआँ औ क़तरा -क़तरा वज़ूद
अल्लाह! आरज़ू ....... तेरी रहमतों की "
"भूखे पेट , नंगे बदन बिलखता बचपन
गरीबी के अभिशाप से सिसकता है मन
देखने को रोज़ चूल्हे से उठता धुआँ
हाड़ -तोड़ मेहनत से ना थकता ये तन। "
"ज़िन्दगी को समझते हैं एक जुआ
प्रतिक्षण लाँघते मौत का कुआँ
ये लत है नशे की गफलतों की
घुटता है मन ,साँसे धुआँ -धुआँ। "
"ये दुनिया है नशे की ग़फ़लतों की
जिंदगी से दूर मौत से उल्फ़तों की
साँसे धुआँ औ क़तरा -क़तरा वज़ूद
अल्लाह! आरज़ू ....... तेरी रहमतों की "
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