June 07, 2014

मुक्तक



"भूखे पेट , नंगे बदन बिलखता बचपन
गरीबी के अभिशाप से सिसकता है मन
देखने को रोज़ चूल्हे से उठता धुआँ
हाड़ -तोड़ मेहनत  से ना  थकता ये  तन। "



"ज़िन्दगी को समझते हैं एक जुआ
प्रतिक्षण  लाँघते  मौत का कुआँ
ये  लत है नशे की गफलतों की
घुटता  है मन ,साँसे धुआँ -धुआँ। "


"ये दुनिया है नशे की ग़फ़लतों  की
जिंदगी से दूर मौत से उल्फ़तों  की
साँसे धुआँ  औ क़तरा -क़तरा वज़ूद
अल्लाह! आरज़ू .......  तेरी रहमतों की "

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