वर्ण के उच्चारण मे जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्राएं दो प्रकार की होती हैं। गुरु और लघु। गुरु मात्रा के उच्चारण मे लघु से दुगुना समय लगता है।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
ये सारे स्वर गुरु हैं और इनसे युक्त हर व्यंजन भी गुरु माना जाएगा।
इसके अलावा अनुस्वार युक्त व्यंजन या स्वर भी गुरु माने जाएंगे। जैसे - अंत(२१), कंस(२१), हंस(२१)
विसर्ग युक्त स्वर या व्यंजन भी गुरु माने जाते हैं। जैसे - पुनः (१२), अतः (१२)
चंद्रबिंदुयुक्त व्यंजन या स्वर लघु माने जाते है यदि वो किसी अन्य गुरु स्वर से युक्त न हो तो। जैसे - हँस (११), विहँस (१११)
लेकिन आँख (२१), काँख (२१)
आधे वर्ण की गणना नहीं होती किंतु वो आधा वर्ण अपने पूर्ववर्ती लघु वर्ण के साथ मिलकर उसे गुरु कर देता है परंतु यदि पूर्ववर्ती वर्ण गुरु ही है तो कोई अंतर नहीं आएगा वो गुरु ही रहेगा। जैसे -
इच्छा - २२
शिक्षा - २२
आराध्य - २२१
विचित्र - १२१
पत्र - २१
यहाँ कुछ अपवाद भी हैं जिनका ध्यान रखा जाना जरुरी है। कुम्हार (१२१), कन्हैया (१२२), तुम्हारा (१२२), उन्हें (१२), जिन्हें (१२), जिन्होनें (१२२) जैसे शब्दों में आधा वर्ण अपने पूर्ववर्ती लघु वर्ण को गुरु नहीं करता।
अ, इ, उ आदि स्वर लघु होते हैं और इनसे युक्त व्यंजन भी लघु ही होंगे। जैसे - कम (११), दम (११), अंतिम (२११), मद्धिम (२११), कुमार (१२१), तुम (११)
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