June 15, 2014

नमस्कार! दोस्तों ,आज पितृ -दिवस (फादर्स -डे ) के अवसर पर आप सबसे पुनः रूबरू हूँ। दोस्तों ,पिता का आशीष और स्नेह ,हम सबके साथ आजीवन रहता है-चाहे वो शरीर में हों या ना  हों। पिता के साथ ,स्नेह ,प्यार -दुलार ,डाँट -अनुशासन से जुड़ीं  यादें ,जीवन -पर्यन्त हमें सहेजती और संभालती  रहती हैं।

यह एक संयोग ही है कि , आज फादर्स -डे पर मेरे पापा मुझसे बहुत दूर अमेरिका में हैं और बीमार हैं। उनसे दूरी की छटपटाहट में मैंने भी कुछ लिखा है ,साझा कर रही हूँ।
             
         आदरणीय पापा ,
                                    याद नहीं ,इससे पहले कब आपको ख़त  लिखा था। फ़ोन ने हमारे संवाद को कितना औपचारिक बना दिया है। कई बार आपसे बात "आप ठीक हैं ना ?" से आरंभ  होती है और "ठीक है पापा अपना ध्यान रखियेगा " पर ख़त्म होती है।  फ़ोन रखने के बाद भी बहुत कुछ कुलबुलाता है मन में -जो कभी कह नहीं पाती ,आज कहती हूँ…………पापा माँ  के आँचल में अगर ममता की गर्माहट मिली तो आपका स्नेह सदैव ठंडी छाँव के समान  रहा है।
                                             आज भी याद है -आपका हाथ पकड़ कर सड़क पार करना ,विक्की पर आपके पीछे बैठ कर आपकी बुशर्ट को कस  कर मुठ्ठी में भींचना ................ वो सहमना आपकी आँखों से और रिपोर्ट -कार्ड पर  साइन करवाते समय आपके मनोभावों को अपनी  आँखों से पढ़ना।आपका  हँसना  माँ  की शिकायतों पर और फिर हमें सीमाओं में रहना सिखाना। आज उम्र के इस पड़ाव पर भी जब मैं खुद दो युवा बच्चों की माँ हूँ,आपकी सीख और आदर्शों को गुनती हूँ। मुझे गर्व है कि  ,आपने पैसा नहीं नाम कमाया और हमारी फरमाइशों को पूरा करते समय अपने त्याग का एहसास तक नहीं होने दिया। पापा ,क्या हुआ गर आज आप ज्यादा चल नहीं सकते ,जीवन रूपी मैराथन में आपने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। मुझे विश्वास  है कि  ,आप इस बार भी उठ कर खड़े होंगे ,क्योंकि आपको पता है कि  ,हमें आज भी आपकी उतनी ही ज़रुरत है।
                                                                                                                      आपकी प्रीति  

No comments:

Post a Comment