समय जैसे पंख लगा कर उड़ गया और देखते ही देखते मेरी प्यारी बेटी 25 बरस की हो गयी। आज उसके जन्म-दिन पर उसके लिए कुछ पंक्तियाँ -
"पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
देखे हैं जो तुमने सपने ,अपने मन में
पूरे हों सब -कोशिशों में ऐसा तुम रँग भर देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
ज़िन्दगी की दुश्वारियों में ,उलझ ना जाना नादानी में
क़शमक़श के हर पल में ,ख़ुद को एक आवाज़ देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
चुप ना रहना ,कभी ना सहना -बेतरह और बेवज़ह
मन के हर ग़म ,हर पीड़ा को हमेशा तुम अलफ़ाज़ देना ,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
गुम ना होना झूठ ,बनावट और फ़रेब की अंधी गलियों में
अपनी डोर रख अपने हाथ खुद को ऊँची उड़ान देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना। "
"पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
देखे हैं जो तुमने सपने ,अपने मन में
पूरे हों सब -कोशिशों में ऐसा तुम रँग भर देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
ज़िन्दगी की दुश्वारियों में ,उलझ ना जाना नादानी में
क़शमक़श के हर पल में ,ख़ुद को एक आवाज़ देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
चुप ना रहना ,कभी ना सहना -बेतरह और बेवज़ह
मन के हर ग़म ,हर पीड़ा को हमेशा तुम अलफ़ाज़ देना ,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना।
गुम ना होना झूठ ,बनावट और फ़रेब की अंधी गलियों में
अपनी डोर रख अपने हाथ खुद को ऊँची उड़ान देना,
पँखों को परवाज़ देना ,ख़ुद को अलग अंदाज़ देना। "
No comments:
Post a Comment