May 09, 2012

ये बात पिछले वर्ष मई के महीने की है .........(मैंने ये तभी लिखा था ,पर आप सबके साथ आज अपनी बात साझा कर रही हूँ)टीवी चल रहा था , मै अपने रोज़मर्रा के काम निबटा रही थी. किसी न्यूज़ चैनल पर ख़बरें आ रही थीं. अचानक एक खबर पर कान खड़े हो गए . खाद्य मंत्री संसद में वक्तव्य दे रहे थे ..........."लोग ज्यादा खाने लगे हैं ,इसलिए महंगाई बढ रही है ,लोगों की आमदनी बढ़ गयी है इसलिए महंगाई बढ़ गयी है."आज जब देश का आम आदमी महंगाई की मार से तिलमिलाया घूम रहा है ,तब हमारे देश की संसद में ही ऐसी बेतुकी और बेहूदी दलील दी जा सकती है.लिखने बैठूं तो सुबह से शाम हो जाए और शाम से सुबह.......फिर भी इन माननीयों का महिमा-मंडन ठीक से ना कर पाऊँ . सो अपनी भड़ास चंद छंदों में .......................................
                 "हम तो महंगाई की मार से मरे जाते हैं ,आप कहते हैं कि हम ज्यादा खाते हैं.
                              तो सुनिए हम आपको बताते हैं
                    हम तो हाड़-तोड़ मेहनत से कमाते हैं, जतन से पकाते हैं,
           मिल-जुल कर खाते हैं, फिर भी  कितने बच्चे भूखे ही सो जाते हैं.
              हम तो महंगाई की मार से मरे जाते हैं,आप कहते हैं कि हम ज्यादा खाते हैं.
                            तो सुनिए हम आपको बताते हैं.
             आप हराम का कमाते हैं,लूट-खसोट कर खाते हैं,
     खा-खा कर हमें ही पकाते हैं फिर भी हम आपको बर्दाश्त किये जाते हैं.
       हम तो महंगाई की मार से मरे जाते हैं ,आप कहते हैं क़ि हम ज्यादा खाते हैं.
          तो सुनिए हम आपको बताते हैं.
      बढ़ी हुई कमाई पर हम अपना दिल भी बढ़ाते हैं,पाई-पाई टैक्स की चुकाते हैं.
       बचे हुए में फिर कुछ बचाते हैं ,फिर भी भविष्य की चिंता में घुले जाते हैं.
       हम तो महंगाई की मार से मरे जाते हैं ,आप कहते हैं कि हम ज्यादा खाते हैं.
                 तो सुनिए हम आपको बताते हैं.
             हम जो लें हँस के चुटकी भी ग़र,आप गुस्से से लाल-पीले हुए जाते हैं.
             खुद संसद की गरिमा को रख ताक पर खुद ही उसे गिराते हैं.
              फिर भी सिर तो हम ही शर्म से झुकाते हैं.
        हम तो महंगाई की मार से मरे जाते हैं,आप कहते हैं कि हम ज्यादा खाते हैं.
                        तो सुनिए हम आपको बताते हैं.
आप चुनाव से पहले बरसाती मेंढक की तरह टर्राते हैं,
झूठे वादों से हमें लुभाते हैं,हमारी खुशियों में सेंध लगाते हैं.
            फिर भी हम आपको चेताते हैं कि,संभल जाओ वर्ना अब हम आते हैं.
           हम तो महंगाई क़ी मार से मरे जाते हैं, आप कहते हैं कि हम ज्यादा खाते हैं.

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