संसद का साठवां जन्मदिन.......................१३ मई २०१२
................. टीवी पर सीधा प्रसारण आ रहा था. आम तौर पर खाली-खाली
दिखने वाला संसद भवन का सेंट्रल हॉल खचाखच भरा था.उस दोपहर उसी हॉल में
चर्चा के दौरान भी बहुत से सांसद नदारद ही थे. पर अभी सब सजे -धजे बैठ कर
शास्त्रीय संगीत का आनंद ले रहे थे और शायद मन ही मन रात्रि-भोज के लिए मूड
बना रहे थे. तभी एक उदघोषणा के बाद गायिका शुभा मुदगल का आगमन हुआ.वो आयीं
,आराम से गद्दे पर बैठ कर पूरी संसद को आइना दिखा कर चली गयी.उन्होंने
शास्त्रीय गायन शैली में दो प्रस्तुतियां दी ,"इतना ऊँचे उठो कि जितना उठा
गगन है"(द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)और "मज़हब कोई ऐसा बनाया जाये जिसमे
इंसान को इंसान बनाया जाये"(नीरज)शास्त्रीय शैली में इन गीतों को प्रस्तुत
करना एक साहसपूर्ण कदम था, और इससे उपयुक्त अन्य कोई गीत हमारे माननीयों
के लिए हो भी नहीं सकते .शुभा मुदगल वाकई बधाई की पात्र हैं.हम सब तो
अपनी-अपनी भड़ास हवा में निकालते रहते हैं. शुभा मुदगल ने उन्हें मिले मौके
को व्यर्थ नहीं गंवाया .
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