April 10, 2012

वो ससुराल में मेरा पहला दिन था.मई की झुलसाती गर्मी और शादी के घर की गहमा-गहमी.पूरा घर मेहमानों से खचाखच भरा था और ऊपर से बिजली गुल!'गुज़रा गवाह' और 'लौटा बाराती' दोनों की क्या दशा होती है -ये तो सभी जानते हैं. सो यहाँ भी हर बाराती मौका देख कर इधर-उधर लोट लगाने की फिराक में था.और जो बची घर की घराती महिलाएं थी वो भी उनींदी सी थीं.आलम ये कि हर कोई अस्त-व्यस्त और पस्त! तभी मैंने ध्यान दिया कि हर दो मिनट बाद किसी न किसी के मुहँ से 'महरी' की आवाज लग रही है और जवाब में  'आवत हई',जो  सुन कर ही उसकी मुस्तैदी का एहसास दिलाता था.मै घूंघट के अन्दर सोचती रही कि,हर वक्त भला महरी का क्या
काम?हमारे यहाँ तो महरी सुबह-शाम आकर बर्तन धो कर चली जाती थी
समय के साथ पता चला कि महरी पड़ोस के घर में ही रहती थी .वो एक परित्यक्ता थी और भरी जवानी में ही बेसहारा होकर बगल वाली चाची के घर आई थी तभी से दोनों घरों में काम करते-करते उसका जीवन बीत रहा था. मैंने एक दिन उससे पूछा'तुम्हारा कोई नाम तो होगा' तब बहुत सोच कर वो खिस्स से हंसी और बोली 'उत्लहली'(उतावली)  उत्लहली के कामों की लिस्ट अंतहीन थी.कभी-कभी वो मुझे अल्लादीन के चिराग वाले जिन्न सी लगती -मुहँ से फरमाइश निकली नहीं कि महरी ये जा और वो जा.वह हमें घर बैठे चाट खिलाती,जूस पिलाती,बिजली-पानी न रहने पर कुएँ के ठन्डे पानी से भरी बाल्टियों से आँगन भर देती और कभी कोई सामान खरीदना हो तो आधी दुकान ही घर में सजा देती.
जिस पति ने कभी उसकी सुधि नहीं ली उसके लिए उसे तीज का कठिन व्रत करते देख मैं क्रोध से भर जाती. वो तो अपनी सौत के बेटों के लिए उपहार खरीदती और खुद हमारे पुराने कपड़ों में ही खुश रहती .उसने मेरे सास-श्वसुर की बहुत सेवा की . पापाजी के न रहने पर हमारे घर की आठ सालों तक देखभाल भी की .फिर जब हमने अपना पैतृक मकान बेचा तब वह अपने गाँव चली गयी. इस बात को आज आठ वर्ष बीत चुके हैं .इसे विडंबना कहूँ या जीवन का कटु सत्य कि जो कभी हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा थी,हमारे हर सुख-दुःख की साक्षी बनी, उससे फिर कभी मिलना न हुआ. पता नहीं वो किस हाल में होगी इस पल उत्लहली के बारे में लिखते समय मेरी आँखों में आँसू हैं और मन में यही प्रार्थना कि वो किसी कष्ट में न हो.
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1 comment:

  1. Maami, reading this made me blissful from a deep sense of nostalgia, and sad from a shared concern for Mehri, at the same time. I can't lead myself to believe that in her age and condition she must be doing fine. But I do hope she has the inner comfort of knowing she has touched many lives and always meant good for others. I remember her vividly.

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