October 01, 2014

आज जब  मैंने अपने यहाँ सफाई करने वाले लड़के से कहा कि ,"तुम्हारी  झाड़ू ख़राब हो गयी है ,नयी ले आओ "तो वह बोला ,"मैडम २ अक्टूबर के बाद मँगाइएगा ,आजकल झाड़ू महंगी बिक रही है। "मैं अपनी हँसी  रोक पाती ,इससे पहले ही वह फिर बोला ,"मैडम कल नहीं आऊँगा। कल पार्क में डबल ड्यूटी करनी है ,परसों साहब लोग झाड़ू लगाने आ रहे हैं तो कल पार्क चकाचक साफ़ किया जायेगा। "(दरअसल वो एक स्थानीय पार्क में सफाई कर्मी है और पार्ट-टाइम हमारे घर में भी काम करता है ,जिससे उसे कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।) शाम को पति देव भी भुनभुनाते हुए घर में घुसे -"क्या यार दो अक्टूबर को भी ऑफिस जाना है। " मैंने तंज़ कसा  -अच्छा झाड़ू लगाने ! वो तुनके -हुंह ! हम क्यों लगाएंगे  झाड़ू ,जो १५ अगस्त और २६ जनवरी को गुब्बारे और कबूतर उड़ाते हैं वही लोग  झाड़ू भी लगाएंगे। पर जाना तो पड़ेगा ही। मुझे अपनी दादी की एक कहावत याद आई -एक जना  झाड़ू लगाये तो एक उसकी कमर पकडे। मोदी जी ने झाड़ू पकड़ने का संकल्प क्या लिया ,पूरा देश  झाड़ूमय  हो गया। लक -दक  सूट -बूट झाड़ कर ,झाड़ू फिरा कर ,हाथ झाड़ कर मीडिया को बाइट देने की होड़ मची है। प्रधानमन्त्री से लेकर मंत्री ,नेता अफसर सभी नयी नवेली झाड़ू हाथ में लेकर निकलेंगे और फिर कैमरे  की ज़द के बाहर  इन झाड़ूओं का अम्बार औने -पौने बिक जायेगा।  नयी झाड़ू तो मैं २ अक्टूबर  के बाद ही  खरीदूँगी। पर मज़ाक से इतर एक बात विचारणीय है कि  ,साल में एक दिन स्वच्छता अभियान अपनी प्रतीकात्मकता को साल  के अन्य ३६४ दिनों में भी बनाये रखे तो कुछ बात बने। दरअसल स्वच्छता अभियान से नहीं हमारी सोच में बदलाव से होगी। बड़ी-बड़ी कोठियों में मार्बल फर्श की स्कर्टिंग तक को नौकरों से रगड़वाने वाली सभ्रांत महिलाये ये सोचना भी नहीं चाहतीं कि ,उनके घर का कूड़ा नौकर कहाँ फेंक रहा है। हर गली ,नुक्कड़,चौराहों पर जमा कूड़ा ये तो बताता है कि  ,हमारे घर बहुत साफ़ हैं। पर यही कूड़ा नालियों में फंस कर सीवर जाम करता है और फिर सीवर भी सड़क पर बहता है।'मन की बात' लिखते समय  मैं गूगल बाबा की मदद  कम  ही लेती हूँ ,पर मेरे सीमित ज्ञान के हिसाब से भी कम से कम  हर १. ५ किलोमीटर पर एक सफाईकर्मी तो होना ही चाहिए। जब से सफाई का काम नगरमहापालिका द्वारा ठेके पर दिया जाने लगा ,तबसे सफाई व्यवस्था और  भी चरमरा गयी है। कर्मचारियों की कमी तो है ही। सफाई के आधुनिक उपकरण और सीवर साफ़ करने वाली मशीने भी स्टोर में पड़ी ज़ंग खाती हैं। शराब पीकर सफाईकर्मी सीवर में घुस कर सफाई करता है। आये दिन सफाई कर्मी हादसों का शिकार होते हैं ,जिसका कोई मुआवज़ा सरकार द्वारा नहीं दिया जाता। सफाई के काम को एक वर्ग-विशेष से जोड़ कर देखना -यह भी शायद हमारे देश की ही विशिष्टता है। मोदी जी की ये सांकेतिक पहल अच्छी है। इस अभियान के लोगो में गांधी जी के चश्मे का प्रयोग किया गया है। पर फैशन के इस दौर में गाँधी  का चश्मा आउटडेटिड है और फिर चश्मा चाहे कोई भी हो अगर उसके पीछे की आँखे बंद होंगी तो अपने घर से बाहर  की गंदगी हमें उतनी देर ही उद्वेलित करेगी ,जितनी देर जेब से रुमाल निकाल कर नाक पर रखने में लगती है। प्रधानमंत्रीजी और उनके अमले को यह समझना ज़रूरी है कि  ,देश ,प्रदेश ,शहर ,गाँव ,गली नुक्कड़ हर जगह कूड़ा -प्रबंधन एक गंभीर समस्या है ,जिसे बहुत ही व्यवस्थित और वैज्ञानिक ढँग  से दूर करने की पहल होनी चाहिए। निश्चय ही कोई भी व्यवस्था अपने उद्देश्य में तभी सफल होती है जब कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से हो। तो मेरे विचार से मोदी जी की झाड़ू पहले भ्रष्टाचार पर ही चलनी चाहिए। सड़के खुद-ब  -खुद साफ़ हो जाएंगी। 

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