"मधुर चाँदनी से बन आये थे तुम जीवन में,
रस प्रेम-सुधा बन छाए थे तन-मन में।
कितने पूनम, फिर कितनी अमावस,
मिल कर भोगे ,जीवन के सब नवरस।
आये वसन्त, फिर गए जो पतझड़ ,
वो गूँज हँसी की, आँसू की हर लड़।
बन गयी हैं थाती, जीवन की अब,
जो कहीं थीं बातें तुमने तब।
जीवन की साँध्य बेला में आज,
अब जाकर जाना ये राज।
बोते हैं जो हम जीवन में कल,
जीते आज उसी को पल-पल।
लो उम्र इस बंधन की, सुनहरी सूर्य-किरण सी हो गयी,
कुछ बातें तेरी-मेरी ,फिर भी क्यूँ अनकही सी रह गयीं। "
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