July 31, 2014

साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन ! प्रेमचंद जी की प्रायः सभी पुस्तकें पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला है ,पर "गोदान"मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक है। यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है ,जितना तब था ,जब इसे लिखा गया था। इसके अनेकानेक पठनीय अंशों में से एक अंश आप सबके लिए ----

"वैवाहिक जीवन के प्रभात में मादकता अपनी गुलाबी लालसा के साथ उदय होती है और ह्रदय के सारे आकाश को  अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याह्न का प्रखर ताप  आता है ,क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट  जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने खड़ी  होती है। उसके बाद विश्राममय सँध्या  आती है ,शीतल और शांत। जब हम थके हुए पथिकों की भाँति दिन भर की यात्रा का वृतांत कहते और सुनते हैं-तटस्थ भाव से ,मानों  हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं ,जहाँ नीचे का जनरूरव हम तक नहीं पहुँचता। "

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