July 12, 2014

लघु कथा -"दान"      दीनदयाल जी को कोट के अंदर एक और स्वेटर पहनते देख कर ,बहू  रीना ने टोका ,"पापा पार्क में धूप  होगी ,स्वेटर से गर्मी लगेगी। " "नहीं  बेटा  ,गर्मी लगेगी तो कोट उतार कर हाथ में ले लूँगा। " दीनदयाल जी के मन में तो कुछ और ही था। पार्क से लौट कर दीनदयाल जी ,बहू से नज़रें चुराते रहे। शाम की चाय पर उन्होंने रीना से कहा ,"बेटा  आज मेरा स्वेटर चोरी हो गया ,मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी ,पार्क में सच में बहुत गर्मी लगी। मैंने स्वेटर उतार कर बेंच पर ही रख दिया था ,पता नहीं कौन आँख बचा कर ले गया। "रीना ने भी झूठे गुस्से से कहा "देखा मेरी बात ना  मानने  का नतीजा। चलिए कल से पहनना हो तो पुराना  स्वेटर ही पहनियेगा। "दरअसल ड्राइवर ने उसे दोपहर को ही बता दिया था कि , पापा जी ने अपना स्वेटर एक गरीब आदमी को दान कर दिया है ,उसने देते हुए देख लिया था। दीनदयाल जी खुश हैं कि ,ज्यादा डाँट नहीं पड़ी। सस्ते में ही निपट गए। 

No comments:

Post a Comment