July 10, 2014

 -लघु-कथा -" ठूँठ "



सुबह के सात बज चुके थे ,अरुणा ने एक नज़र घडी पर डाली और सोचने लगी.. अब तक गंगा काम करने नहीं आई. क्या हुआ ? फिर बीमार पड़ी या बच्चों को कुछ हुआ .. कहलवाया भी नहीं ,इसी उधेड़बुन में उसने एक नज़र सिंक में पड़े बर्तनों पर डाली और एक गहरी साँस लेकर मन ही मन स्वयं को तैयार करने लगी कि,अब बर्तन भी धोने होंगे। तभी कॉलबेल बजी …. दूध वाला होगा … भगौना लेकर अरुणा ने दरवाज़ा खोला तो सामने पड़ोस का नौकर किशन खड़ा था ,बुरी तरह हाँफते हुए उसने बताया कि,गंगा ने अपने पति को जान से मारने की कोशिश की है ,किसी तरह उसका पति जान बचा कर भागा है. गंगा ने अपने आपको और बच्चों को कमरे में बंद कर लिया है और बाहर भीड़ लगी है. अरुणा स्तब्ध सी खड़ी थी .. गंगा जो चींटी मारने की भी हिम्मत नहीं रखती थी ,अपने पति को कैसे मार सकती है . वह पति को बता कर घर से निकल पड़ी ... उसके कदम तेजी से आगे बढ़ रहे थे पर मन पीछे को भाग रहा था .. सात साल पहले गंगा अपनी पाँच साल की बेटी को लेकर अरुणा के घर काम की तलाश में आई थी ,अरुणा को भी तब ज़रुरत थी तो उसने गंगा को रख लिया।
 गंगा बेहद सरल और हँसमुख स्वभाव की थी , अरुणा को कभी उससे कोई परेशानी नहीं हुई. गंगा का पति ज्यादातर घर में ही रहता था ,कामचोरी की आदत और शराब की लत के कारण किसी नौकरी में टिक ना पाता था . इसी बीच उसके तीन बच्चे और हो गए , पैसों को लेकर अक्सर उसकी किच-किच गंगा से होती ,जब-तब वह गंगा पर हाथ भी उठा देता . चोटों के निशान के साथ जब भी गंगा काम पर आती ,अरुणा से नज़र चुराती रहती, और जब भी अरुणा ने उससे ज्यादा पूछने की कोशिश की ,वह आँखों में आँसू भर कर खिस्स से हँस कर कहती "मेरा नसीबा .... बीवी जी ,ऐसे ही पार लगूंगी ." उसकी चोट पर दवा लगाते हुए अरुणा क्रोध से भर जाती और कहती ,"मैं  तेरी जगह होती तो उसे जेल में भिजवाती " तब भी गंगा हँस कर साड़ी का पल्लू मुँह में दबा कर कहती "ना-ना बीवी जी मरद है मेरा "
      गंगा का घर आ गया .... बाहर भीड़ लगी थी,अरुणा ने दरवाज़ा खटखटाया और कहा "गंगा  दरवाज़ा खोलो ,मैं हूँ -अरुणा " अंदर एक कोने में खून से सना बाँका (एक औज़ार ) पड़ा था। कल ही तो गंगा ने उसके माली से यह कह कर ये बांका लिया था कि ,"घर के बाहर पेड़  का ठूँठ  काटना है। " गंगा की बारह वर्ष की बेटी घुटनो में मुँह  गड़ाए बैठी थी। गंगा क्रोध से हाँफ  रही थी,अरुणा को देखते ही उससे लिपट गयी "बीबी जी उसने बाप- बेटी के रिश्ते की भी मर्यादा नहीं रखी  ,मैं क्या करती। "अरुणा ने उसे सँभालते हुए कहा " ठूँठ अभी कटा नहीं है , अब चल मेरे साथ पुलिस- स्टेशन। "गंगा   ने बेटी की रक्षा के लिए वो कदम उठाया जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। 

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