February 14, 2012

ख़ुशी-ख़ुशी घर से बाज़ार जाने के लिए निकली ही थी कि,सड़क पर पानी भरा देख कर ख़ुशी काफूर हो गयी.आखिर ये ख़ुशी इतनी क्षणिक क्यों होती है?पर ये तो सच है कि अगर एक पल के लिए भी मन खुश हो जाए तो जीवन में कई सारे क्षण जुड़ जाते हैं.किसकी ख़ुशी किसमे है सोचा तो लगा .........................
दो महीने की गुनगुन की ख़ुशी........माँ के आँचल में.चार साल के वरुण की ख़ुशी........पापा की ऊँगली पकड़ कर चलने में.आठ साल के पप्पू की ख़ुशी..........चुपके से पापा का razor गाल पर चलाने में.बारह साल की महक की ख़ुशी................मम्मी की नक़ल करने में.सोलह के असलम की ख़ुशी...............गर्ल फ्रेंड की मुठ्ठी में.पच्चीस की सुजाता की ख़ुशी milkmaid के डिब्बे की तलहटी में छिपी है ,जो उसे डिब्बा खाली करके ही मिलेगी अब इसे मीठा खाने का बहाना मत कहियेगा ,उनतीस के नीरज की ख़ुशी........नई-नई बीवी के साथ खाना पकाने में.उनतालीस के अनिल की ख़ुशी................बीवी के मायके जाने में.उनचास के चढ्ढा जी की ख़ुशी......चुपके से बेटे का मोबाइल फ़ोन देखने में..............इत्यादि-इत्यादि....मगर सत्तर साल का होते ही सबकी ख़ुशी प्यार के दो बोल में ही छिपी होती है, पर ये दो बोल किस्मत वालों को ही नसीब होते हैं. उफ़! आज कोई गंभीर  बात नहीं .......देखो अभी-अभी मैंने गर्दन घुमा कर काम वाली बाई को आवाज लगा कर पूछा " अर्चना  तेरी ख़ुशी कहाँ है?" जवाब मिला........"अरे भाभी खुसी इहाँ कहाँ उई तो अपनी नानी घरे गयी है."और आज जो मै ये लिखने बैठी  हूँ उसकी प्रेरणा एक phone-call है .सुबह-सुबह पीछे वाली भाभी जी का फ़ोन आया-" हाय  प्रीती आज मुझे इतनी ख़ुशी मिली इतनी ख़ुशी मिली क़ि पूछो मत "मैंने पूछा -"कहाँ भई कहाँ?"उधर से आवाज आई ......drawing room में कारपेट के नीचे .........दरअसल उन्हें वहां अपनी खोई हुई अंगूठी मिल गयी थी. ख़ुशी ऐसी ही है इसे पाना जितना सरल है उतना ही कठिन भी.




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