February 18, 2012

गुलाब दिवस  की शाम को अदले-बदले गए गुलाब के फूल अब तक तो शर्तिया मुरझा गए होंगे, लेकिन उस शाम लूटा और  लुटाया गया प्यार अभी भी दिलों में  हिलोरें मार रहा होगा..........इसी उम्मीद के साथ के , आज की शुरुआत....................हाँ तो उस दिन  कितने ही दिलों में प्यार के बीज पड़े होंगे, बहुतों का प्यार परवान चढ़ा होगा, कई जोड़े प्यार की चरम गति को प्राप्त हुए होंगे (उस दिन शादी की  लगन अच्छी थी.) दरअसल उस शाम जब मैं सब्जी लेने निकली तब चौराहे पर फ्लोरिस्ट की दुकान के आगे लड़के लड़कियों की भीड़ को देख कर मुझे याद आया कि आज तो रोज़ डे  है.मन में कसक भी हुई.....हमारे जमाने में क्यों नहीं  था .हम तो स्वतंत्रता -दिवस ,बाल-दिवस और शहीद-दिवस मना कर ही  बड़े हो गए. फिर लगा प्यार के इज़हार  के लिए किसी ख़ास दिन का इंतजार क्यों?प्यार तो एक ऐसा खूबसूरत एहसास है जो दिल को छूते ही नज़रों से बयान हो जाता है.फिर प्यार  करने  से कहीं ज्यादा मुश्किल है प्यार निभाना..............मगर इस बारे में फिर कभी......
आज  'प्यार करो फुरसत करो' की तर्ज़ पर गली, नुक्कड़, चौराहों ,पार्कों में दिखते जोड़ों  के लिए चंद पंक्तियाँ ..................   ."-प्यार प्यार-प्यार जल्दी से कर लो नज़रें चार
                       कह लो सुन लो दिल का हाल, क्या हो कल किसका ऐतबार.
                      प्यार-प्यार  प्यार जल्दी कर लो नज़रें चार.
                  कल थी नीता  ,आज सुनीता, मीता  बैठी कल को  तैयार.
                  प्यार-प्यार-प्यार  जल्दी से कर लो नज़रें चार.
                 जाना है कहाँ,जायेंगे कहाँ....क्या खोया और क्या पाया सोचेंगे अगली बार.
                 प्यार-प्यार-प्यार  जल्दी से कर लो नज़रें चार"
चलते-चलते ..........क्योंकि बात गुलाब के फूल से  शुरू हुई थी,तो कुछ गुलाब की पंखुड़ियां पुरानी डायरी  या किताबों के पन्नों में भी होंगी .......प्यार  के अनछुए ,अनकहे और अनसुने एहसास को संजोए हुए.प्यार के इस अनोखे ज़ज्बे को मेरा सलाम!

 

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