May 07, 2017

"एक कॉल खुद को भी........ "
 
उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आयी। अगली सुबह सो कर  उठी तो मस्तिष्क कुछ उलझा सा था। रोज़ की दिनचर्या से निबट कर ,मैंने आदतन फ़ोन उठाया किसी से बात करने के लिए। मैंने लैंडलाइन फ़ोन से जैसे ही नंबर डायल  किया ,अचानक मेरा मोबाइल फ़ोन बजने लगा ,मैंने दूसरे हाथ से मोबाइल फ़ोन उठाया तो स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा - home calling .मैंने खुद को ही फ़ोन मिला दिया था।   खिसियानी सी हँसी हँस कर मैंने फ़ोन काट दिया और अगला नंबर डायल कर  दिया। सारे दिन कई लोगो से फ़ोन पर बात करके , टीवी देख कर ,वॉट्सएप्प पर मैसेजेस पढ़ कर और इधर-उधर  ठेल  कर ,थोड़ी देर सो कर भी जब दिमाग  शांत नहीं हुआ तो मैंने प्रेमचंद का कहानी संकलन उठा लिया। घंटे भर किताब पढ़ कर जब मैं रात में बिस्तर पर लेटी और अन्मयस्कता का ज्वार कुछ  कम हुआ तो अचानक अंतर्मन से आवाज़ आयी -"कॉल किया भी और बात भी नहीं की ". मैं फिर एकबारगी हँस  पड़ी ,पर दूसरे  ही पल लगा -हाँ ! मुझे तो याद ही नहीं मैंने पिछली बार खुद से कब बात की थी। बात छोटी मगर गूढ़ है -आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हम खुद को ही भूलते जा रहे हैं। हमें पूरी दुनिया की खबर है स्वयं को छोड़ कर। कनेक्टिविटी का बुख़ार सब पर चढ़ा  हुआ है पर खुद से सब डिसकनेक्ट हैं। किसी महापुरुष ने सच ही  कहा है -"स्वयं से दूर होना ही आनंद से दूर होने का कारण  है।" जाते -जाते बता दूँ कि ,उस रात मैंने अपने आप से एक वायदा किया कि , हर रोज़ सोने से पहले मैं कुछ देर अपने भीतर भी झाकूँगी। उस सुबह मैंने गलती से ही खुद को फ़ोन मिलाया था ,मगर मेरी उस गलती ने मुझे खुद के पास ला दिया ,तो आप ये गलती कब करने जा रहे हैं ?

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