१-मात्रा --२०
हे ! भोलेनाथ ,नीलकंठ त्रिपुरारी ,
हुई अबेर ,अब सुन लो अरज़ हमारी।
ले लो अब ,अवतार तुम संहारक का ,
अधर्म के बोझ से धरती है भारी।
२-मात्रा -१७
जटा विराजे गँगा की धारा ,
बन नीलकंठ ,पीकर विष सारा।
आये हो हरन को सारे कष्ट ,
जब-जब हमने ,तुम्हें पुकारा।
हे ! भोलेनाथ ,नीलकंठ त्रिपुरारी ,
हुई अबेर ,अब सुन लो अरज़ हमारी।
ले लो अब ,अवतार तुम संहारक का ,
अधर्म के बोझ से धरती है भारी।
२-मात्रा -१७
जटा विराजे गँगा की धारा ,
बन नीलकंठ ,पीकर विष सारा।
आये हो हरन को सारे कष्ट ,
जब-जब हमने ,तुम्हें पुकारा।
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