February 27, 2014

१-मात्रा --२०

हे ! भोलेनाथ ,नीलकंठ त्रिपुरारी ,
हुई अबेर ,अब सुन लो अरज़ हमारी।
ले लो अब ,अवतार तुम संहारक का ,
अधर्म के बोझ से धरती है भारी।



२-मात्रा -१७

जटा  विराजे गँगा  की  धारा ,
बन नीलकंठ ,पीकर विष सारा।
आये हो हरन को सारे कष्ट ,
जब-जब हमने ,तुम्हें पुकारा।




No comments:

Post a Comment