February 11, 2013

"आया बसंत ,छाया  बसंत ,कण-कण  ने गाया  बसंत।
            झर  गए पीले पात सभी,कोंपलों ने देखा नव-प्रभात अभी,
              सृष्टि  की नवीनता में,होगा मन की मलिनता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
               फूली सरसों लो बनी पीताम्बर,आमों के भी बौराए शिखर,
                धरती की इस उदारता में,होगा मानव की कृपणता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
                   फूलों से बगिया महकी-तितली बहकी,मधु-रितु के मद में डूबी-कोयल कूकी,
                    प्रकृति की इस सरसता में होगा,जीवन की नीरसता का अंत।
आया बसंत,छाया  बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।"



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