"आया बसंत ,छाया बसंत ,कण-कण ने गाया बसंत।
झर गए पीले पात सभी,कोंपलों ने देखा नव-प्रभात अभी,
सृष्टि की नवीनता में,होगा मन की मलिनता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
फूली सरसों लो बनी पीताम्बर,आमों के भी बौराए शिखर,
धरती की इस उदारता में,होगा मानव की कृपणता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
फूलों से बगिया महकी-तितली बहकी,मधु-रितु के मद में डूबी-कोयल कूकी,
प्रकृति की इस सरसता में होगा,जीवन की नीरसता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।"
झर गए पीले पात सभी,कोंपलों ने देखा नव-प्रभात अभी,
सृष्टि की नवीनता में,होगा मन की मलिनता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
फूली सरसों लो बनी पीताम्बर,आमों के भी बौराए शिखर,
धरती की इस उदारता में,होगा मानव की कृपणता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।
फूलों से बगिया महकी-तितली बहकी,मधु-रितु के मद में डूबी-कोयल कूकी,
प्रकृति की इस सरसता में होगा,जीवन की नीरसता का अंत।
आया बसंत,छाया बसंत,कण-कण ने गाया बसंत।"
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