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"ख़ामोशी' ,कई बार होती है ...
बंद कमरे में खिड़की की तरह...
आज़ाद कर देती है,अनकहे लफ़्ज़ों को।
अक़्सर होती है,पुल दो दिलों के दरमियाँ
जहाँ होती है,बस नज़रों की बतकही।
बाज़ दफ़ा ये होती है,सवाल और जवाब
एक ही वक़्त पर,एक ही बात का....
किसी ख़ामोश लम्हे में ही मुक़म्मल होती है अधूरी बात..
. .हाँ! ख़ामोशी रख लेती है आबरू कुछ रिश्तों की"
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